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तत्त्वानुशासन
कारण यह कि उन्होने नीतिवाक्यामृतकी सस्कृत-टीकाका, जो कि किसी जैनेतर विद्वानको बनाई हुई है और जिसमे कर्ताका नाम तथा रचनाका समय दिया हुमा नहीं है, यह कथन सत्य मान लिया है कि कान्यकुब्जके महाराज महेन्द्रदेव (महेन्द्रपाल) ने पूर्वाचार्योंके अर्थशास्त्रकी दुखबोधता और अर्थगुरुतासे खिन्नचित्त होकर अन्यकारको इस सुबोध, ललित एव लघु नीतिवाक्यामृतकी रचनाके लिये प्रेरित किया, जो कि समसामयिक उल्लेख न होकर वादको परिकल्पित अथवा किसी किंवदन्ताके आधार पर अवलम्बित जान पड़ता है । क्योकि उक्त टीकाकार ग्रन्थकार सोमदेवसे कुछ परिचित मालूम नहीं होता, इसीमे उसने उसी कथनके सिलसिलेमे, जो ग्रन्थ-मंगलचारण के प्रास्ताविक त्पमे है, यह भी लिख दिया है कि नीतिवाक्यामृतका कर्ता मुनिचन्द्र नामका क्षपणकव्रतधर्ता है, उसने अपने गुरु सोमदेवको नमस्कारपूर्वक यह निर्विघ्न सिद्धिकर आदि विशेपण-विशिष्ट एक (मगल) श्लोक कहा है। टीकाकारके इस कथनका सोमदेवके उक्त दोनो ग्रन्थोसे तथा परभनीके ताम्रशासनसे भी कोई समर्थन नहीं होता, प्रत्युत इसके नीतिवाक्यामृतके अन्तमें ग्रन्थकर्ताको जो प्रशस्ति लगी है उसके विपरीत भी पडता है। यदि कन्नोजके राजा महेन्द्र पालकी प्रेरणासे इस नीति ग्रन्थके रचे जाने जैसी कोई महती घटना घटी होती तो सोमदेव ग्रन्थमे उसका उल्लेख किये बिना न रहते ।
१ उक्त कथन-सूचक टीकाका वह प्रास्ताविक वाक्य इस प्रकार है -
श्रथ तावदखिलभूपालमौलिलालितचरणयुगलेन रघुवशावस्थायिपराक्रम पालित कृत्स्न कर्णकुम्जेन महाराजश्रीमहेन्द्रदेवेन पूर्वाचार्य-कृतार्थशास्त्र-दुरवधिग्रन्थगौरव-खिन्नमानसेन सुबोधललितलधुनीतिवाक्यामृतरचनासु प्रवर्तित , सकलपारिषदत्वान्तीतिग्रन्थस्य नानादर्शनप्रतिवद्धश्रोतृणा तत्तदभीष्ट-श्रीकाठाच्युतविरच्यईता वाचनिकनमस्कृति-सूचन तथा स्वगुरों सोमदेवस्य च प्रणामपूर्वक शास्त्रस्य तर्कतृत्व स्थापयितुं सकलसत्वकृताभयप्रदान मुनिचन्द्राभिधान' क्षपणकद्रतधर्ता नीतिवाक्यामृत-कर्ता निविघ्नसिद्धिकर सकलकल्मभहर प्रकटार्थपचकप्रपचक श्लोकमेक जगाद ---