________________
प्रस्तावना
हैं। उनके उपासकाचारमे तत्त्वानुशासनका अनुसरण होनेसे तत्त्वानुशासन वि० स० १०५० से पूर्वकी रचना है । इन अमितगतिके गुरु माधवसेन, माधवसेनके गुरु नेमिषेण और नेमिषेणके गुरु अमितगति प्रथम थे, जो कि देवसेन के शिष्य थे, ऐसा अमितगति (द्वितीय) ने अपने सुभापितरत्नसन्दोह आदि ग्रन्थोकी प्रशस्तियोमे प्रकट किया है। इससे वे अमितगति द्वितीयसे दो पीढी पहलेके विद्वान हैं । उनका समय यदि ४०-५० वर्ष पहले तकका मान लिया जाय, जो अधिक नहीं है, तो वे विक्रमकी ११वी शतीके प्रथम चरणके विद्वान् ठहरते हैं । उन के योगसारमे तत्त्वानुशासनका उपयोग होनेसे तत्त्वानुशासन विक्रमकी ११वी शताब्दीके प्रथम चरणसे बादकी रचना नहीं, ऐसा स्थिर होता है। ___ आलापपद्धति प्राय उन देवसेनकी कृति कही जाती है जिन्होने वि० स० ६६० मे 'दर्शनसार' को सकलित किया है। यदि यह कथन वस्तुत ठीक हो तो तत्त्वानुशासनकी रचना, जिसके 'अनादिनिधने द्रव्ये' पद्यको अपनाया गया है, उससे पहलेकी होनी चाहिये । परन्तु यह बात अभी सन्दिग्ध कोटिमे स्थित है, क्योकि यह ग्रन्थ न तो उक्त देवसेनके दर्शनसार, तत्त्वसार, आराधनासार जैसे दूसरे ग्रन्थोकी तरह प्राकृतमे है, न सारान्त है और न इसमे ग्रन्थकारने अपना नाम ही मूलके किसी पद्यमे दिया है । ग्रन्थके प्रारम्भमे "पालापपद्धतिर्वचनरचनाऽनुक्रमेण नयचक्रस्योपरि उच्यते" इस वाक्य के द्वारा जिस नयचक्रके ऊपर इस ग्रन्थके रचनेका उल्लेख किया गया है वह कौन-सा नयचक है, इसका भी अभी तक कोई ठीक निर्णय नही हो सका। नयचक्रादिसग्रहमे प्राकृतका जो लघुनयचक प्रकाशित हुआ है, जिसे दर्शनसारके कर्ताका कहा जाता है, उसके मूलमे भी अन्यकारका नाम नहीं है । प्रत्युत इसके, एक दूसरा गद्य-पद्यात्मक नयचक भी है, जो ग्रन्थकारके नामसहित सस्कृत-भाषामे है और क्षुल्लक श्रीसिद्धसागरजीके द्वारा सम्पादित एव अनुवादित होकर सन् १९४६ में प्रकाशित हो चुका है, जिसे