SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ द्रव्यसग्रहके कर्ताने भावास्रव के भेदोमे 'प्रमाद का भी वर्णन किया है और अविरतिके पाच तथा कषायके चार भेद ग्रहण किये हैं, परन्तु गोम्मटसारके कर्ताने 'प्रमाद' को भावास्रवके भेदोंमे नही माना और प्रविरतिके ( दूसरे ही प्रकार के ) बारह तथा कषायके पच्चीस भेद स्वीकार किये हैं, जैसा कि दोनो ग्रन्थोके निम्न वाक्योसे प्रकट है - ― प्रस्तावना मिच्छत्ताऽविरदि पमाद-जोग - कोहादश्रोऽय विष्णेया । पण पर परणवह तिय चदु कमसो भेदा दु पुन्वस्स ॥ - द्रव्यस० गा० ३० मिच्छत श्रविरमरण कसाय जोगा य श्रासवा होंति । परण बारस परगवीसं पण्णरसा होंति तब्भेया ॥ -गोम्मटसार, फर्मकांड गा० ७८६ एक ही विषयपर दोनो ग्रन्थोके इन विभिन्न कथनों से ग्रन्थ-कर्त्ताओकी विभिन्नताका बहुत कुछ बोध होता है । ऐसी स्थितिमे द्रव्यसग्रहके कर्त्ता गोम्मटसारके कत्र्तासि भिन्न कोई दूसरे ही नेमिचन्द्र होने चाहियें । जैनसमाज मे 'नेमिचन्द्र' नामके धारक अनेक विद्वान आचार्य हो गए हैं। एक नेमिचन्द्र ईसाकी ११ वी शताब्दी मे भी हुए हैं, जो वसुनन्दि सैद्धान्तिक के गुरु थे और जिन्हें वसुनन्दि-श्रावकाचारमे 'जिनागमरूपी वेला तर गोंसे धूयमान और सम्पूर्ण जगत मे विख्यात' लिखा है । बहुत सभव है कि ये हो नेमिचन्द्र द्रव्यसग्रहके कर्त्ता हो । दोनो ग्रन्थोंके भिन्न कर्तृत्त्वके सम्बन्ध मे ये सब बातें मैंने आजसे कोई ४५ वर्ष पहले ३ जनवरी १६१८ को, प्रोफेसर शरच्चन्द्र घोशाल एम० ए० वी० एल० सरस्वती द्वारा सम्पादित द्रव्यसग्रहके अग्रेजी सस्करणकी समालोचनामे, प्रकट की थी, क्योकि उस वक्त सबसे पहले प्रो० घोशालने ही अपनी प्रस्तावना ( Introduction) में बिना किसी प्रबल आधार अथवा प्रमाणके गोम्मटसारके कर्त्ता नेमिचन्द्रको ही द्रव्यसग्रहका कर्ता मान कर ब्रह्मदेवके उक्त कथनको अस्वीकार किया था। मेरी यह समालोचना
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy