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________________ प्रस्तावना २५ आचारसारके 'गभीर मधुर मनोहरतर' तथा 'येनाज्ञानतमस्ततिविघटते' नामके दो पद्य उद्धृत किये हैं। प्राचारसार आचार्य वीरनन्दीकी कृति है, जिसपर उन्होने कनडीमे स्वोपज्ञ टीका लिखी है और वह वि० स १२१० मे लिख कर समाप्त हुई है। मूलग्रथको उससे कुछ ही वर्ष पहलेकी रचना समझना चाहिये। प्रवचनसारकी जयसेन-टीका पचास्तिकायकी टीकासे बाद बनी है, जैसा कि उसके 'पूर्व पचास्तिकाये स्यादस्तीत्यादिप्रमाणवाक्येन सप्तभगी व्याख्याता' इस वाक्यसे प्रकट है। जयसेनकी इन प्रवचनसारादिकी टीकामोका वालचदकी कनडी टीकाओ पर प्रभाव है । जैसा कि डा० ए० एन० उपाध्यायने प्रवचनसार की प्रस्तावना (Introduction) पृ० १०४-६ मे व्यक्त किया है । साथ ही यह भी बतलाया है कि नयकीतिके शिष्य इन बालचन्द्रका समय मोटेरूपसे ईस्वी सन् ११७६ (स० १२२३) से १२३१ (स० १२८८) तक है, जिनमे पहला नयकीतिका मृत्युसवत् और दूसरा वालचन्दकी प्रेरणासे दिये गए एक दानशासनका लेखन-काल है। इससे जयसेनकी पचास्तिकाय -टीकाका समय विक्रम की १ वी शताब्दीका पूर्षि निश्चित है। __ योगशास्त्रको हेमचन्द्राचार्यने चौलुक्य राजा कुमारपालकी प्रार्थनासे रचा है और वह वि० स० १२०७ से १२२९ के मध्यवर्ती समयमे रचा गया है । स० १२२६ हेमचन्द्र और कुमारपाल दोनोके जीवनका अन्तिम काल है। ___ द्रव्यसग्रह-टीकाके प्रारम्भमे ब्रह्मदेवने, मूलपथके निर्माणादिका सम्बन्ध व्यक्त करते हुए, उत्यानिकादिके रूपमे जो कुछ लिखा है वह इस प्रकार है - "अथ मालवदेशे धारानामनगराधिपतिराज-भोजदेवाभिधानकलिकालचक्रवर्ति-सम्बन्धिन. श्रीपाल-महामण्डलेश्वरस्य सम्बन्धिन्याश्रमनामनगरे श्रीमुनिसुव्रत-तीर्थकर-चैत्यालये सुद्धात्मद्रव्य-सवित्ति
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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