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________________ २२ तत्त्वानुशासन मोर जिनपर बहुत स्पष्ट स्पसे तत्त्वानुशासनका प्रभाव पाया जाता है, जैसे भास्करनन्दिका 'ध्यानस्तव', जो तत्त्वानुशासनके अनुकरणसे भरपूर है। (४) नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेवके द्रव्यमग्रह पर भी तत्त्वानुशासनका प्रभाव लक्षित होता है । द्रव्यसग्रहकी ४७ वी गाया तो तत्वानुशासनके ३३ वें पद्यके प्राय अनुवादरूपमे ही जान पड़ती है । दोनों पद्य और गाथा इस प्रकार हैं - स च मुक्तिहेतुरितो ध्याने यस्मादवाप्यते द्विविधोऽपि । तस्मादम्यत्यन्तु ध्यान सुधिय सदाऽप्यपास्याऽऽलस्यम् ॥३३॥ दुविह पि मोफ्खहेउ भाणे पाउणादि ज सुरपी णियमा । तम्हा पयत्त चित्ता जूय झारण समन्मसह ॥४७॥ धर्मरत्नाकर (स० १०५५) के 'सामायिक-प्रतिमा-प्रपचन' नामक १५वें अवसरमै निम्न पद्यको ग्रन्यका नग बनाया गया है, जो तत्त्वानुशासनका १०७ वा पद्य है - अकारादि-हफारान्ता मत्राः परमशफ्तय. । स्वमंडलगता ध्येया लोकद्वयफलप्रदा ॥ इसके प्रागे 'मडलार्चन प्रसिद्ध' ऐसा लिस दिया है, जो कि पद्यमे प्रयुक्त हुये 'स्वमडलगता' पदसे सम्बन्धित सूचनाको लिये हुए है। (६) अमितगति (द्वितीय) के उपासकाचारमे एक पद्य निम्न प्रकारसे पाया जाता है - अन्यस्यमान बहुधा स्थिरत्व यथति दुर्योधमपीह शास्त्रम् । मूनं तथा ध्यानमपीति मत्वा ध्यान सदाऽभ्यस्यतु मोक्तुकाम ।" १०-१११ ध्यान-विषयक अभ्यासको प्रेरणाकरनेवाला यह पद्य तत्त्वानुशासनके निम्न पद्यसे प्रभावित और उसके अनुसरणको लिये हुए जान पडता है :
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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