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प्रस्तावना
१५
इस शिलालेखका समय शक स० ६२२ (वि० स०७५७) के लगभग अनुमान किया गया है । परन्तु किस आधार पर, यह कुछ वताया नही गया।
(३) वे नागसेन जो चामुण्डरायके साक्षात् गुरु अजितसेनके प्रगुरु थे अर्थात् अजितसेनके गुरु मार्यसेन (मार्यनन्दी)के गुरु थे और जिनका चामुण्डराय-पुराणमे आचार्य कुमारसेनके बाद उल्लेख है । चामुण्डरायपुराण का निर्माण शक स० ६०० (वि० स० १०३५) में हुमा है, और इसलिये इन नागसेनका समय वि० स० १००० से कुछ पहलेका समझना चाहिये।
(४) वे नागसेन जिन्हे राणी अक्कादेवीने 'गोणदवेडगि-जिनालयके लिये ई० सन् १०४७ (वि० स० ११०४) मे भूमिका दान दिया था और जो मूलसघ. सेनगण तथा होगरि (पोगरि) गच्छके विद्वान् आचार्य थे।
(५) वे नागसेन जो नन्दीतट-गच्छकी गुर्वावली के अनुसार गगसेनके उत्तरवर्ती और सिद्धान्तसेन तथा गौपसेनके पूर्ववर्ती हुए हैं । जिनका समय भी १०वी शताब्दीका मध्य काल जान पडता है । अथवा वे नागसेन जो उक्त गुर्वावलीके अनुसार गोपसेनके उत्तरवर्ती जान पड़ते हैं और जिनके नामका पाठ कुछ भशुद्ध हो रहा है । अत अन्य कारके गुरु मोका परिचयादि भी ग्रम्यके समय-निर्णय पर अवलम्बित है।
१ देखो पी० वी देसाईका 'जैनिज्म इन साउथ इडिया' पृ० १३४-३७ तथा डा०
ए० एन० उपाध्येका 'चामुडराय ऐंड हिज लिटरेरी प्रिडिसेसर्स' नामक
अग्रेजी निबन्ध । , २. देखो, 'जैनिज्म इन साउथ इडिया' पृ० १०६ । ३. यह गुर्वावली 'अनेकान्त' यर्प १५ की गत ५वीं किरणमें प्रकाशित हो चुकी है।