________________
२२४
तत्त्वानुशासत पढे-पढावें सुनें-सुनावें, जो इसको मादरके साथ; प्रमुदित होकर चले इसी पर, गावें सदा आत्म-गुण-गाथ। आत्म-रमण कर स्वात्मगुणोको ओ' घ्यावे सम्यक् सविचार, वे निज आत्म-विकास सिद्ध कर, पावें सुख अविचल-अविकारा॥४ इस प्रकार श्रीनागसेनसूरिके दीक्षित-शिष्य-रामसेनाचार्यविरचित सिद्धि-सुख-सम्पतका उपायभूत तत्त्वानुशासन नामक ध्यानशास्त्र सानुवाद-व्याख्यारूप
भाष्यसे अलकृत समाप्त हुआ।