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________________ पक्ति १६ मिच्छत्त परिशिष्ट १. भाष्यका संशोधन भाष्यके छपनेमे प्रेसको असावधानीसे कुछ अशुद्धियां हो गई हैं। बिन्दु-मात्रादिकी साधारण अशुद्धियोको छोडकर, जो कही-कही प्रायः टाइपके ठीक न उठनेके कारण हुई जान पडती हैं, शेष अशुद्धियोका सशोधन निम्न प्रकार है --- पृष्ठ अशुद्ध २४ पयदि पयहि मिच्छत्त २४ द्वेषस्तु षस्तु भ्रमिष्यति भ्रमिष्यसि अभित्र अभिन्न (४७) (४६) श्रुतेन श्रुतेन तिगुत्त तिगुत्तो एकग्गमणे एयग्गमरणो देहावस्था देहावस्था १११ व ब व वं १२० यह और रत्नोको और उन्हे रत्नोकी १३३ विभ्रता विभ्रता १५३ यस्मिन् मिथ्या यन्मिथ्या अन्यत्र अन्यन्न तमस्पन्तहेगा तमस्यन्त शा १५६ लिए हुए हैं लिए हुए आवृत्त हैं व्यावृत्त आवृत्त पूर्ववेद पूर्वविद प्रदेशमपिण्ड. प्रदेशमपिण्ड. २२१ फोमाकी कोशके ऐसे १२० MMM on 29 2022 १५७ १५८ १५६
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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