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________________ १२ तत्त्वानुशासन - इसी महत्वको सूचित करती है । अनेकानेक प्रतियोके सामने आ जाने और उनमे प्रथकारका नाम रामसेन मिलने से ग्रन्यके रामसेन-कृत होनेमे भी अब विवाद के लिये कोई स्थान नही रहता । सेदका विषय है कि प० नाथूरामजी प्रेमीने मेरे उक्त लेस परमे ग्रन्थकर्ताके नामकी गलतीको मान तो लिया था, परन्तु वे उसके सुधारकी कोई सूचना मुद्रित प्रतियोमे न लगा सके। इसलिये गलती वरावर रूढ होती चली गई - किसी भी अनुवादके अवसर पर उसका सुधार नही हुआ - श्रीर उसने कितने ही पाठकोको भ्रमके चक्करमे डाला तथा गलत उल्लेखो को अमर दिया है !! हालमे एक गलत उल्लेखकी सूचना पाकर श्री डा० ए० एन० उपाध्यायने अपने ५ मई १९६१ के पत्र मे ठीक ही लिखा है कि 'जब तक मुद्रित मूल ग्रंथ पर नागमेनका नाम ( ग्रथकारके रूपमें ) चल रहा है तब तक ऐसी गलतियाँ ( गलत उल्लेख ) अनिवार्य ( inevitable) हैं । S ४ रामसेनाचार्यका परिचय और समय ग्रन्थकारमहोदय श्रीरामसेनाचार्यने, ग्रन्थ- प्रशस्तिमे, अपना जो सक्षिप्त परिचय पाँच गुरुमो के नामो और अपने दो साधारण विशेषणोके उल्लेख - रूपमे दिया है उससे अधिक दूसरा कोई विशेष एव स्पष्ट परिचय अभी तक ऐसा उपलब्ध नही हो सका जिससे यह मालूम होता कि वे किस सघ, गण या गच्छके आचार्य थे, कौन-कौन उनके शिष्यप्रशिष्य हुए हैं और उन्होने किन दूसरे ग्रन्योका निर्माण तथा कार्यों का सम्पादन किया है । रामसेन नामके अनेक आचार्य, भट्टारक तथा विद्वान हो गये हैं, उनमेसे किसके साथ इस ग्रन्थके कर्तृत्वका सम्बन्ध जोडा जाय अथवा किसको इसका कर्ता माना जाय, यह कार्य सहज नही है; क्योकि किसी भी ग्रन्थ, प्रशस्ति, पट्टावली या शिलालेखमे अभी तक ऐसा कोई स्पष्ट उल्लेख देखनेमे नही आया जिसमे
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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