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________________ २०२ तत्त्वानुशासन सुख-दुखका संक्षिप्त लक्षण स्वाधीन और पराधीनकी दृष्टि पर ही अवलम्बित रहता है, जिसकी सूचना श्रीअमितगतिआचार्यने भी अपने 'योगसारप्राभूत' मे निम्न वाक्य-द्वारा की है सर्व परवश दुःख सर्वमात्मवश सुखम् । वदन्तीति समासेन लक्षण सुख-दुःखयोः ॥६-१२॥ लोकमे भी यह कहावत प्रसिद्ध है कि 'पराधीन सपनेहु सुख नाही' । अत जो स्वात्माधीन सुख है वही वस्तुत. सुख है और उसीका नाम मोक्षसुख इसलिये कहा गया है कि वह घातियाकर्मोके बन्धनसे मुक्त होने पर ही प्रादुर्भूत होता है। सासारिक सुखका लक्षण यत्तु सांसारिक' सौख्य रागात्मकमशाश्वतम् । स्व-पर-द्रव्य-सभूत तृष्णा-सन्ताप-कारणम् ॥२४३।। मोह-द्रोह-मद-क्रोध-माया-लोभ-निबन्धनम् । दुःख-कारण-बन्धस्य हेतुत्वाद्दुःखमेव तत् ॥२४४॥ 'और जो रागात्मक सांसारिक सुख है वह प्रशाश्वत है-- स्थिर रहनेवाला नही-स्वद्रव्य और परद्रव्यसे (मिलकर) उत्पन्न हुआ है-इसीलिये स्वाधीन नही-तृष्णा तथा सन्तापका कारण है, मोह-द्रोह और क्रोध-मान-माया-लोभका साधन है और दुःखके कारण बन्धका हेतु है, इसलिये (वस्तुत) दुखरूप ही है।' व्याख्या-यहाँ दूसरे इन्द्रियजन्य सासारिक-सुखका जो स्वरूप दिया है वह पराधीन, बाधा-सहित, नश्वर और घातिया१ मु ससारिक ।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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