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तत्त्वानुशासन का माहात्म्य स्पष्ट हो जाता है। इस विषयमे श्रीसोमदेवाचार्यने 'यशस्तिलक'के निम्न पद्यमे लिखा है कि ऐसा कोई गुण, ज्ञान, दृष्टि या सुख नही है जो ध्यानके प्रकाशमे अन्धकार-समूहके नाश हो जाने पर नहीं प्राप्त होता है
न ते गुणा न तज्ज्ञानं न सा दृष्टिन तत्सुखम् । यद्योगोद्योतिते न स्यादात्मन्यस्ततमश्चये ॥ कल्प ४० ।।
ध्यानका प्रधान कारण गुरूपदेशादि-चतुष्टय ध्यानस्य च पुनर्मु ख्यो हेतुरेतच्चतुष्टयम् । गुरूपदेशः श्रद्धान सदाऽभ्यासः स्थिरं मनः ॥२१॥ ___ 'और उधर ध्यान-सिद्धिका मुख्य कारण यह चतुष्टय है, जो कि गुरु-उपदेश, श्रद्धान, निरन्तर अभ्यास और स्थिरमनके रूपमे है।' - व्याख्या-जिस ध्यानका माहात्म्य ऊपर ख्यापित किया गया है उसकी सिद्धिके प्रधान कारण ये चार हैं-१ सद्गुरुका वह उपदेश जो उस ध्यानके स्वरूपादिका यथार्थबोध करा सके, २ सद्गुरुके उपदेश-द्वारा प्राप्त ज्ञानका सम्यश्रद्धान, ३ ज्ञान और श्रद्धानके अनुरूप निरन्तर अभ्यास, ४ अभ्यास-द्वारा मनकी दृढताका सम्पादन । सद्गुरु वही हो सकता है जो उस ध्यानविषयका यथार्थज्ञाता हो-चाहे वह प्रत्यक्ष हो या परोक्षअथवा जिसने अभ्यासादिके द्वारा उस विषयको सिद्धिको प्राप्त किया हो।
यहाँ ध्यानके क्रमवद्ध चार मुख्य हेतुओका निर्देश किया गया है। यो ध्यानके और भी अनेक हेतु है, जिन्हे प्रस्तुतग्रन्थमे ध्यानकी सामग्री कहा गया है (७५) वह सब सामग्री भी ध्यानके हेतुरूपमे ही स्थित है, क्योकि उसके विना यथेष्ट ध्यान नही बनता।