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तत्त्वानुशासन ध्यानविषयक कार्यों का यहाँ उल्लेख किया गया है वे सब ग्रन्थकारमहोदयके स्वत के अनुभूत अथवा दृश्य-विषय हैं और इस. लिये उनमे शकाके लिये स्थान नही है। इन आकर्पणादि विषयोका विद्यानुशासन तथा भैरव-पद्मावती-कल्प आदि अनेक मत्रशास्त्रोमे विधिविधानपूर्वक विस्तारके साथ वर्णन है। यत्पुनः पूरणं कुम्भो रेचनं दहनं प्लवः । सकलीकरणं मुद्रा-मन्त्र-मडल-धारणा ॥२१३॥ कर्माऽधिष्ठात-देवानां सस्थानं लिङ्गमासनम् । प्रमारणं वाहनं वीर्य जाति म-द्युतिदिशा ॥२१४॥ भुज-वक्त्र-नेत्र-सख्या' भावः क्रूरस्तथेतरः । 'वणः स्पर्शः स्वरोऽवस्था वस्त्र भूषणमायुधम् ।।२१।। एवमादि यदन्यच्च शान्त-क्रूराय कर्मणे । मंत्रवादादिषु प्रोक्त तद्व्यानस्य परिच्छदः ॥२१६॥
' इसके अलावा जो पूरण, कुम्भन, रेचन, दहन, प्लवन, सकलीकरण, मुद्रा, मत्र, मडल, धारणा, कर्माधिष्ठाता देवोका सस्थान-लिङ्ग-आसन-प्रमारण- वाहन- वीर्य-जाति-नाम-ज्योतिदिशा-मुखसंख्या नेत्रसख्या-भुजासख्या-क्र रभाव-शान्तभाव-वर्णस्पर्श-स्वर-अवस्था-वस्त्र-भूपण-आयुध इत्यादि और जो कुछ अन्य शान्त तथा क्र रकर्मके लिये मत्रवाद आदि ग्रन्थोमें कहा गया है वह सब ध्यानका परिकर है-यथाविवक्षित ध्यानकी उपकारक सामग्री है।'
व्याख्या-इन चारो पद्योमे जिन बत्तीस विषयोका नामो
१.श्रा वक्त्रनेत्रभुजासख्या, म सख्या। २. मु वर्णस्पर्शस्वरोऽ । ३. ज कर्मणा । ४ सि जु मत्रवादिषु यत्प्रोक्तं ।