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________________ प्रस्तावना पदके प्रयोगद्वारा, जिसका उत्तरवर्ती पद्य मे प्रयुक्त हुए 'तेन' पदके साथ गाढ सम्बन्ध है, अथकारमहोदयने इन पाचोको अपना गुरु सूचित किया है अर्थात् यह व्यक्त किया है कि 'जिसके अमुक-अमुक नामके चार विद्यागुरु और 'नागसेन' नामक मुनि दीक्षागुरु हैं उस रामसेनके द्वारा यह ग्रन्थ रचा गया है।' प्रथमतः प्रकाशित 'मु' प्रतिमे 'रामसेन' के स्थानपर फिरसे 'नागसेन' का नामोल्लेख है, जिससे ग्रन्थकारका वास्तविक नाम गडबडमे पड गया। इतना ही नहीं, किन्तु दीक्षागुरुका नाम भी गडबडा गया और ग्रन्यकारके वास्तविक दीक्षागुरु ही इस पथके कर्ता समझ लिये गये । माणिकचन्द दि० जैन ग्रन्थमालाके मत्री प० नाथूरामजी प्रेमीने अपने 'सक्षिप्त प्रथपरिचय'मे लिख दियाः ' इस (तत्त्वानुशासन) ग्रथक कर्ता आचार्य नागसेन हैं। ग्रथके अन्तमे वे अपने दीक्षागुरुका नाम विजयदेव और विद्या-गुरुओका नाम वीरचन्द्रदेव, शुमचन्द्रदेव तथा महेन्द्रदेव बतलाते हैं।" इस परिचयमे 'शुभदेव' के स्थान पर 'शुभचन्द्रदेव' नामकी कल्पना तो कर ली गई, परन्तु 'महेन्द्रदेव' के स्थानपर 'महेन्द्रचन्द्रदेव' नामकी कल्पना नहीं की गई । साथ ही 'यस्य' पद का 'तेन' पदके साथ जो गाढ संबध है उसका विचार छूट गया, जब तक इस गाढ सम्बन्धको हटाकर कोई दूसरा सम्बन्ध किसी अन्य पदके द्वारा बीचमे स्थापित नही किया जाता तब तक 'नागसेन' को दीक्षागुरुके पदसे अलग नहीं किया जा सकता। नागसेनको ही ग्रन्थकार मान लेनेसे दीक्षागुरुके लिये जो 'पुण्यमूर्ति' और 'उद्घचरित्रकीति' ये दो विशेषण प्रयुक्त हुए थे वे स्वय अथकारके लिये लागू हो जाते है। ग्रथकार स्वय गुरुको गौणकर अपने लिये उन विशेषणोका प्रयोग करे, यह कुछ सगत मालूम नही होता। यह सब सोचकर मुझे इस ग्रन्थके घोषित कर्ता नामके सम्बन्धमें सन्देह हो गया और इसलिये ग्रन्थकी दूसरी प्रतियोको प्राप्त करनेकी इच्छा और भी बलवती हो उठी।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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