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तत्त्वानुशासन चारुकीति-भट्टारक-ज्ञानभडार (जैन मठ) की तीन प्रतियाँ न० ६५, ३८६, ५७५१। पिछली ५ प्रतियो का डा० बेलणकर जिनरत्नकोशसे पता चला हैं। खोज करने पर दूसरे भी कुछ शास्त्रभडारोमे इस मन्थकी अन्य प्रतियोके मिलनेकी सभावना है।
३. ग्रन्थकार . रामसेनाचार्य इस तत्त्वानुशासन ग्रन्थके कर्ता रामसेन नामके विद्वान (आचार्य) हैं; जैसा कि ग्रन्थ-प्रशस्तिके निम्न पद्यसे जाना जाता है - तेन प्रवुद्धधिषणेन गुरूपदेशमासाद्य सिद्धिसुख-सम्पदुपायभूतम् । तत्त्वानुशासनमिदं जगतो हिताय श्रीरामसेन-विदुषा व्यरचि स्फुटा
थम् ॥२५७॥ ___ ये, गुरूपदेशको पाकर बुद्धि के विकासको प्राप्त हुए, रामसेन नामके विद्वान कौन हैं, इसका अतिसक्षिप्त परिचय ग्रन्थकारमहोदयने स्वय प्रशस्तिके पूर्व पद्यमे अपने गुरुवोके नामोका उल्लेख-पूर्वक दिया है, जो इस प्रकार है:
श्रीवीरचन्द्र-शुभदेव-महेन्द्रदेवा शास्त्राय यस्य गुरुवो विजयाऽमरश्च । दीक्षागुरु पुनरजायत पुण्यमूर्ति
श्रीनागसेनमुनिरुद्घ-चरित्र-फोति. ॥२५६।। इस पद्यके पूर्वार्धमे शास्त्र-गुरुवो (विद्यागुरुवो) का उल्लेख है, जिनके नाम हैं वीरचन्द्र, शुभदेव, महेन्द्रदेव और विजयदेव । उत्तरार्धमे दीक्षा-गुरुका उल्लेख है, जिनका नाम है 'नागसेन' मुनि और जिनके 'पुण्यमूर्ति' तथा 'उद्घचरित्रकोति.' ये दो विशेषण दिये गए है । 'यस्य' १ श्री प० के० भुजवली शास्त्री-दारा सकलित और सम्पादित 'कन्नड-प्रान्तीय
ताडपत्र-ग्रन्थ-सूची' में मूडविद्रीके जैन मठकी इन प्रतियोंके नम्वर ३२०, ७०६ ७५५ दिये हैं और इनकी पत्रसख्या क्रमश ११, १४,५ बतलाई है । साथ ही पत्रोंके साइज तथा पक्तियों आदिकी भी सूचना की है।