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________________ तत्त्वानुशासन मैं उनका बहुत आभारी हूँ। जयपुरकी उक्त प्रतिको 'ज' और आमेरकी प्रतिको 'मे' सज्ञा दी गई है । 'ज' प्रतिकी पत्र संख्या १४ है । प्रथम पत्रका पूर्व पृष्ठ खाली है । अन्तिम पृष्ठके द्वितीय पृष्ठ पर केवल दो पक्तियां हैं-शेष भाग खाली है । वे दोनो पक्तियां इस प्रकार हैं (प्र० प०) यायास्तु नः ।। ५६ इति तत्त्वानुशासनं समाप्तमिति ॥ छ । ॥ छ । सवतु १५६० (द्वि० पं०) वर्षे प्राषाढ वदि ७ पत्रकी लम्बाई १०३ इच और चौडाई ४ इचके करीब है। पक्तियोका प्रति-पृष्ठ कोई एक क्रम नहीं है । प्रथम पत्रके द्वितीय पृष्ठ पर १२, दूसरे पत्रके दोनो पृष्ठो पर १०-१० पक्तियां हैं। शेप पत्रोके पृष्ठो पर ११-११ तथा १२-१२ और कुछ पर १३ पक्तियां भी है। प्रति जीर्ण तथा पतले कागज पर है, जिससे एक तरफके अक्षर दूसरी तरफ कुछ छनेसे मालूम होते हैं । पक्तियोका एक समान क्रम न रहनेसे ऊपर-नीचेका हाशिया भी छोटा-बडा हो गया है। लिपि साधारण है। लिपि-काल अन्तको दोनों पक्तियोके अनुसार आपाढ वदि ७ सवत् १५६० है। आन्तका पत्र कुछ टूट गया-फट गया तथा अतीव जीर्णशीर्ण स्थितिमे है। इस प्रतिका मुद्रित (मु) प्रतिसे मिलान करनेपर जो महत्व-अमहत्वके पाठ-भेद उपलब्ध हुए हैं, उन्हें नोट कर लिया गया है। साधारण व-व, स-श तथा मात्रा आदिके मोटे अशुद्ध पाठ-भेदोको प्राय छोड दिया है, जो बहुत हैं। यह प्रति साधारण तथा अशुद्ध होते हुए भी, इसमें भी उक्त बम्बईको मुद्रित (मु) प्रतिके अशुद्ध पाठोके स्थान पर कितने ही महत्वके शुद्ध पाठ उपलब्ध होते हैं, और इस लिये ग्रन्थके सशोधनमे इससे भी अच्छी मदद मिली है। आमेर भण्डारकी उक्त 'मे'प्रतिकी पत्र-सख्या १३ है, जिनमेसे पहला और तीसरा पत्र नहीं है । पत्रकी लम्बाई १०६ इच और चौडाई प्राय ४१६ इच है । उपलब्ध प्रत्येक पृष्ठ पर यद्यपि १०-१० पक्तियां है परन्तु १२वें पत्रके द्वितीय पृष्ठ पर ११ पक्तियां हैं। प्रति अति जीर्णशीर्ण है, नीचेकी ओरका हाशिया प्राय. टूट-फट गया है, ऊपरका
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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