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ध्यान-शास्त्र
जो स्पर्श-रस-गन्ध वर्ण-गुणवाले होते ह उन्हें 'पुद्गल' कहते है; स्पशके कोमल, कठोर, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष ऐसे आठ, रसके तिक्त (चरपरा), कटुक, अम्ल, मधुर और कषायला ऐसे पांच, गधके सुगन्ध, दुर्गन्ध ऐसे दो, और वर्णके नील, पीत, शुक्ल, कृष्ण और रक्त ऐसे पाँच मूलभेद है। शब्द, बन्ध, सौक्ष्म्य, स्थौल्य, सस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योतवालोको भी पुद्गल कहा जाता है। अथवा यो कहिये कि पुद्गलके इन दस विशेषो अथवा पर्यायोमेसे जिस किसीसे भी कोई विशिष्ट अथवा युक्त है वह पुद्गल है।
गतिरूप परिणत हुए जीवों तथा पुद्गलोंको जो उनके गमनमे उस प्रकार सहायक-उपकारक होता है जिस प्रकार जलमछलियोके चलनेमे, परन्तु गमन न करनेवालोको उनके गमनमे प्रेरक नही है, उसे धर्मद्रव्य कहते है । अधर्मद्रव्य उसका नाम है जो स्थितिरूप परिणत हुए जीवो तथा पुद्गलोको उनके ठहरनेमे उस प्रकार सहकारी-उपकारी होता है जिस प्रकार पथिकोको ठहरनेमे वृक्षादिकको छाया, परन्तु चलते हुओको ठहरनेको प्रेरणा नहीं करता और न उन्हे बलपूर्वक ठहराता है। जो जीवादिक द्रव्योको अपनेमे अवगाह-अवकाश-दान देनेकी योग्यता रखता है उसे आकाशद्रव्य कहते हैं, जिसके लोक-अलोकके विभागसे दो भेद ऊपर बतलाये जा चुके हैं। जो द्रव्योके परिवर्तनरूप है-- १. गइ-परिणयाण धम्मो पुग्गल-जीवाण गमण-सहयारी ।
तोय जह मच्छाण अच्छता णेव सो गई ।।१७।। (द्रव्यसंग्रह) २ ठाण-जु दाण अधम्मो पुग्गल-जीवाण ठाण-सहयारी ।
छाया जह पहियाण गच्छता ऐव सो धरई ॥१८॥ (द्रव्यसग्रह) ३. अवगास-दाण-जोग्ग जीवादीणं वियाण यास ॥१६॥(द्रव्यस०)