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________________ ध्यान-शास्त्र ११७ 'पुरुष (जीवात्मा), पुद्गल, काल, धर्म, अधर्म और प्राकाश ऐसे छह भेदरूप द्रव्य कहा गया है । उन द्रव्य-भेदोमे सबसे अधिक ध्यानके योग्य पुरुषरूप प्रात्मा है।' व्याख्या-द्रव्यके जीव, पुद्गल, धर्म, अधम, आकाश और काल ऐसे मूल छह भेद जैनागममे प्रसिद्ध है । यहाँ जीवद्रव्यको "पुरुप' शब्दके द्वारा उल्लेखित किया गया है । इसके दो कारण जान पड़ते है। एक तो जीव और उसका पर्याय नाम आत्मा दोनो शब्दशास्त्रको दृष्टिसे पुल्लिग है। दूसरे आगे पुरुपविशेषोपंचपरमेष्ठियोको मुख्यत भिन्न-ध्यानका विषय बनाना है । अत. प्रकृतमे सहजबोधकी दृष्टिसे जीवके स्थान पर पुरुषशब्दका प्रयोग किया गया है। अगले पद्यमे इसो पुरुषको 'आत्मा' शब्दक द्वारा उल्लेखित किया ही है। ____ इन छहो द्रव्योमे जीवद्रव्य चेतनामय चेतन और शेष चेतनारहित अचेतन है, पुद्गलद्रव्य मूर्तिक और शेष अमूर्तिक है, कालद्रव्य प्रदेश-प्रचयसे रहित होनेके कारण अकाय है और शेष प्रदेशप्रचयसे युक्त होनेके कारण अस्तिकाय कहे जाते है । परमाणुरूप पुद्गलद्रव्य यद्यपि एकप्रदेशो है, परन्तु नानास्कन्धोका कारण तथा उनसे मिलकर स्कन्धरूप हो जानेके कारण उपचारसे 'सकाय' कहा जाता है । जीव और पुद्गल सक्रिय है, शेष सब निष्क्रिय हैं, ये ही दोनो द्रव्य कथचित् विभावरूप भी परिणमते है, शेष सव सदा स्वाभाविक परिणमनको ही लिये रहते है। धर्म, अधर्म, आकाश ये तीन द्रव्य सख्यामे एक-एक ही है, कालद्रव्य असख्यात हैं, जीवद्रव्य अनन्त हैं और पुद्गलद्रव्य अनन्तानन्त है । जीव, पुद्गल दोनो द्रव्योमे सकोच-विस्तार सभव है, शेष द्रव्योमे वह १. एय-पदेसो वि अणू णाणा-खधप्पदेसदो होदि । वहुदेसो उवयारा तेण य काओ भरण ति सव्वण्हू ।। (द्रव्यस० २६)
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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