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________________ १०६ तत्त्वानुशासन अन्योऽन्यवज्रविद्धपीत चतुरस्रमवनि-बीजयुत । कोरणेषु लान्तयुक्त भूमण्डलसज्ञक ज्ञेयम् ॥३-१७७॥ मण्डलानां यदा मध्ये नामादिन्यास उच्यते । तदा मध्यस्थित बीज महादिक्षु निवेशयेत् ॥३-१८५॥ गणधरवलय नामका एक यत्र है, जिसका नामान्तर गणेशयन्त्र है, प्रतिष्ठापाठोमें भी जिसका उल्लेख है और जिन-बिम्बादिप्रतिष्ठाओके समय जिसका पूजन होता है। इसका प्रारम्भ षट्कोणयन्त्र (चक्र) से विहित है, जिसके ऊपर क्रमश तीन वलय रहते है जिन्हे गणधरवलय कहा जाता है। प्रथम वलयम आठ, दूसरेमे सोलह और तीसरेमें चौबीस कोष्ठक होते हैं, जिनमे ऋद्धिप्राप्त जिनोके नमस्काररूप क्रमश ये मन्त्रपद रहते हैं - (प्रथम वलयमें) १ णमो जिणाण, २ णमो ओहिजिणाण, ३ णमो परमोहिजिणाण, ४ णमो सव्वोहिजिणाण, ५ णमो अणतोहिजिणाण, ६ णमो कोह्रबुद्धीण, ७ णमो बीजबुद्धीण, ८ णमो पदाणुसारीण। (द्वितीय वलयमे) ६ णमो सभिण्णसोदाराण, १० णमो पत्तेयबुद्धाण, ११ णमो सयबुद्धाण, १२ णमो बोहियबुद्धाण १३ णमो उजुमदीण, १४ णमो विउलमदीण, १५ णमो दसपुब्विया (वी)ण, १६ णमो चउदसव्विया (व्वी)ण, १७ णमो अट्ठ गमहाणिमित्तकुसलाण, १८ णमो विउव्वणइड्ढिपत्ताण, १६ णमो विन्जाहराण, २० णमो चारणाण, २१ णमो पण्णसमणाण, २२ णमो आगासगामीण, २३ णमो आसीविसाण, २४ णमो दिट्ठिविसाण । (तृतीय वलयमे) २५ णमो उग्गतवाण, २६ णमो दित्ततवाण, २७ णमो तत्ततवाण, २८ णमो महातवाण, २६ णमो
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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