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________________ ध्यान-शास्त्र १०७ घोरतवाण, ३० णमो घोरपरक्कमाण, ३५ णमो घोरगुणाण, ३२ णमो घोरगुणवभचारीण, ३२ णमो आमोसहिपत्ताण, ३४ णमो खेलोसहिपत्ताण, ३५ णमो जल्लोसहिपत्ताण, ३६ रगमो विट्टोसहिपत्ताण, ३७ णमो सम्वोसहिपत्ताण, ३८ णमो मणबलीण, ३६ णमो वचिबलीण, ४० णमो कायवलीण, ४१ णमो खीरसवीण, ४२ णमो सप्पिसवीण, ४३ णमो महुसवीण, ४४ णमो अमियसवीण, ४५ णमो अक्खीणमहाणसाण, ४६ णमो वड्ढमाणाण, ४७ णमो लोए सव्वसिद्धायदणाण, ४८ णमो भयवदो महदो महावीरवड्ढमाणबुद्धरिसिस्स । ये हो तोनो वलय उक्त मत्रो-सहित यहाँ 'गणभूद्वलयोपेत' पदके द्वारा परिगृहीत अथवा विवक्षित जान पड़ते हैं । ___ गणधरवलय-यत्रमे ततोय वलयकी ऊपरी वृत्तरेखा पर पूर्वकी ओर मध्यमे "ह्री' वीजमत्र विराजता है, इसकी ईकार मात्रासे वलयको त्रिगुणवेष्टित करके अन्तमे उसे 'क्रौं' बोजसे निरुद्ध किया जाता है, जैसा कि आशाधरप्रतिष्ठापाठके "चतुर्विशतिपदान्यालिख्य ह्रीकार-मात्रया त्रिगुण वेष्टयित्वा क्रौकारेण निरुद्ध्य वहि पृथ्वीमडल" इस वाक्यसे प्रकट है। इस प्रकार १. इन ४८ मत्रोमे ११, १२, १३, और ४६ न० के मत्रोको छोड कर शेष ४४ मत्र वे ही है जो षट्खण्डागम-गत वेदनाखण्डके प्रारम्भमे महाकम्मपयडिपाहुडसे उद्धृत हैं और इसलिये गौतम-गणघरकृत कहे जाते हैं । कुछ प्रतिष्ठापाठोमे इनके तथा अन्य चार मत्रोंके भी पूर्व मे 'ॐ ह्रीह" जैसे वीजपद जोड़े गये है, परन्तु श्रीआशाधरकृत प्रतिष्ठासारोद्धारमे ऐसा नही किया गया-इन्हे मूलरूपमे ही रहने दिया गया है, जो ठीक जान पडता है।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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