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________________ ध्यान-शास्त न खात्कृतिन कण्डूति!ष्ठभक्तिर्न कम्पिति.। न पर्वगरिगतिः कार्या नोक्तिरन्दोलितिः स्मितिः ।। न कुर्याद्दूरदृक्पात नैव केकरवीक्षणम् । न स्पन्द पक्ष्ममालानां तिष्ठेन्नासाग्नदर्शनः॥ इनमेंसे पहले पद्यमे पद्मासन, वीरासन और सुखासनका सामान्य-रूप दिया है-समगुल्फ-स्थितिमे स्थित दोनो पदो (पैरो) को ऊरूवो (सक्थियो thighs) के नीचे रखनेसे पद्मासन, ऊपर रखनेसे वीरासन और एक (वाम) पदको ऊरुके नीचे तथा दूसरे (दक्षिण) पदको ऊरुके ऊपर रखनेसे सुखासन बनता है। उक्त आसनोमे सुखासनका लक्षण यह है, ऐसा सूचित करते हुए उत्तरवर्ती पद्योमें उसका जो विशेष रूप दिया है वह इस प्रकार है _ 'गुल्फो-पैरोंके टखनोके ऊपर हथेलियाँ ऊर्ध्वमुख किये बाएँके ऊपर दाहिनेके रूपमे रक्खे हुए दोनो हाथोके अगूठोकी रेखाएँ, नाभिके ऊपरको रोमालि और नासिका ये सम की जानी चाहिये--विषम स्थितिमे न रहे, दृष्टि भी सम होनी चाहिये-इधर-उधरको फिरी हुई नही, और शरीरको न तो अधिक तानकर रक्खा जाय और न आगेको या इधर-उधर झुका कर वामनरूपमे ही रक्खा जाय। दोनो पैरोके मध्यमे एक पैरकी एडीसे दूसरे पैरकी एडीके बीचमे-चार अगुलका अन्तराल रहे, शिर और ग्रीवा स्थिर रहे-इधर-उघरको डोले नही, एडियोके अग्रभाग, घुटने, भोहे, हाथ और नेत्र सम तथा निश्चल रहे। खखारना, खुजाना, होठोको चलाना, कापना, अगुलि-पर्वोपर गिनती करना, बोलना, शरीरका इधर-उधर डुलाना और मुस्कराना ये कार्य न किये जाँय । इसी तरह दूर दृष्टिपात करना-दूरवर्ती वस्तुको देखना, तिरछी नजरसे देखना,
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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