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________________ तत्त्वानुशासन यथावस्थित उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक स्वरूपको-धर्म प्रतिपादितकरता है।' व्याख्या-यहाँ धर्मका सहेतुक स्वरूप वह 'वस्तुस्वभाव' दिया गया है, जिसे स्वामिकुमार जैसे आचार्योंने 'धम्मो वत्थुसहावो' के रूपमे निर्दिष्ट किया है और जिसका समर्थन 'धर्मों हि वस्तुयाथात्म्य' इस आर्षवाक्यके द्वारा भी किया गया है। इस धर्मके स्वरूप-चिन्तनको जो ध्यान लिए हुए हो उसे भी इन पद्योमे धर्म्यध्यान कहा गया है। 'यश्चोत्तमक्षमादिः स्याद्धर्मो दशतयः परः। ततोऽनपेतं यद्ध्यानं तद्वा धर्म्यमितीरितम् ॥५५॥ 'अथवा उत्तमक्षमादिरूप दशप्रकारका जो उत्कृष्ट धर्म है, उससे जो ध्यान युक्त है, वह भी धर्म्यध्यान है, ऐसा कहा गया है।' व्याख्या-यहाँ धर्मके स्वरूप-निर्देशमे उस दशलक्षणधर्मको ग्रहरण किया गया है जो तत्त्वार्थसूत्रादिमे उत्तम विशेषणसे विशिष्ट क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्यके रूपमे निर्दिष्ट हुआ है। इस दशलक्षणधर्मके स्वरूप-चिंतनरूप जो ध्यान है उसे भी धर्म्यध्यान बतलाया गया है । इन धर्मोके साथ प्रयुक्त 'उत्तम' विशेषण लौकिक प्रयोजनके परिवर्जनार्थ है। इस दृष्टिको लिए हुए ही ये दशगुण धर्म कहलानेके पात्र है, जैसाकि श्रीपूज्यपादाचार्यके निम्न वाक्यसे प्रकट है - १. धम्मो वत्थु-सहावो खमादिभावो य दसविहो धम्मो । रयणत्तय च धम्मो जीवाण रक्खण धम्मो ॥ (कार्तिकानु० ४७८) २ मु मे यस्तूत्तम । सि जु यद्वोत्तम । ३ मु मे दशतया । ४ उत्तमक्षमा-मार्दवाऽऽर्जव-शौच-सत्य-सयम-तपस्त्यागा-ss किंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्म । (त० सू० ६-६)
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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