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________________ तत्त्वानुशासन नधन्य-इसलिए ध्याता भी तीन प्रकारके हैं और उनके ध्यान पो तीन प्रकारके है।' व्याख्या-ध्यानकी उत्पत्तिमे ध्यानकी सामग्रीका प्रमुख हाथ रहता है और इसलिये उस सामग्रीके मुख्यतः तीन भेद होनेकी दृष्टिसे यहाँ ध्याता और ध्यान दोनोंके भी तीन-तीन भेदोकी सूचना की गई है। अगले पद्यमे उन भेदोको स्पष्ट किया गया है। यहाँ पद्यमे प्रयुक्त हुमा 'आदि' शब्द मुख्यतः काल तथा भावका और गौणत अन्य सहायक सामग्रीका भी वाचक है। सामग्रोत प्रकृष्टाया ध्यातरि ध्यानमुत्तमम् । स्याज्जघन्यं जघन्याया मध्यमायास्तु मध्यमम्॥४६॥ 'ध्यातामे' उत्तम-सामग्रीके योगसे उत्तम-ध्यान, जघन्यसामग्रीके योगसे जघन्य-ध्यान और मध्यम-सामग्रीके योगसे मध्यम-ध्यान बनता है।' व्याख्या-यहाँ जिस सामग्रीका उल्लेख है वह पूर्व-पद्यानुसार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव आदिको सामग्री है। वह स्थूलरूपसे उत्तम, जघन्य और मध्यमके भेदसे तीन प्रकारकी होती है। जिस ध्याताको उत्तम-सामग्रीकी उपलब्धि होती है, उसमे उत्तम ध्यान बनताहै; जिसको जघन्य-सामग्रीकी उपलब्धि होती है उसमे जघन्य ध्यान बनता है और जिसको मध्यम-सामग्रीकी उपलब्धि होती है उसमे मध्यम-ध्यान बनता है। मध्यमसामग्रीके बहुभेद होनेसे मध्यमध्यानके भी बहुभेद हो जाते हैं । सामग्रीकी दृष्टि से ध्यानोके मुख्य तीन भेद होनेसे ध्याताओके भी वे ही उत्तम, मध्यम और जघन्य ऐसे तीन भेद हो जाते हैं।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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