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तत्त्वानुशासन यह स्पष्ट है कि व्यवहार-मोक्षमार्ग साधन होनेसे निश्चयमोक्षमार्गकी सिद्धिके पूर्व क्षण तक अनुपादेय नही है, उसी प्रकार, जिस प्रकार कि कोठे पर चढनेकी सीढी कोठेके ऊपय पहुँचनेसे पहले तक अनुपादेय नही होती-कोठेकी छतके अत्यन्त निकट पहुँच जाने पर और वहाँ पैर जम जाने पर भले ही वह अनुपादेय अथवा त्याज्य हो जाय ।
निश्चय-व्यवहार-नयोका स्वरूप 'अभिन्न-क-कर्मादि-विषयो निश्चयो नयः ।
व्यवहार-नयो भिन्न-कर्तृ-कर्मादि-गोचरः ॥२६॥ 'निश्चयनय अभिन्नकर्तृ-कर्मादि-विषयक होता है-उसमे कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरणका व्यक्तित्त्व एक दूसरेसे भिन्न नही होता । व्यवहारनय भिन्न कर्तृ-कर्मादि विषयक है-उसमे कर्ता, कर्म,करणादि का व्यक्तित्व एक दूसरेसे भिन्न होता है-यही इन दोनो नयोमे मुख्य भेद
__ व्याख्या-दोनो नयोंके इस स्वरूप-कथनसे निश्चय और व्यवहार मोक्षमार्गके अगभूत जो सम्यग्दर्शनादिक हैं उनके कर्ताकर्मादिका विषय स्पष्ट सूचित होता है-एकमे वह मुमुक्षुके अपने आत्मासे भिन्न नहीं होता और दूसरेमे उससे भिन्न होता
__ आगे तीन पद्योमे व्यवहार और निश्चय दोनो प्रकारके मोक्षमार्गोका अलग-अलग स्वरूप दिया जाता है - १ अभित्र-कर्तृकर्मादि-गोचरो निश्चयोऽथवा । व्यवहार पुनर्देव | निर्दिष्टस्तद्विलक्षणः॥
-ध्यानस्तव ७१