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________________ ३४ तत्त्वानुशासन होता है, यही उसकी प्रमुख कसोटी है । सदिग्धावस्था मे इस कसौटी पर उसे कस लेना चाहिये । जीवादिषु पदार्थेषु सम्यग्ज्ञानं तदिष्यते ॥ २६॥ ' (जिनभाषित ) जीवादि पदार्थो में जो प्रमाणो, नयो और निक्षेपके द्वारा याथात्म्यरूप से निश्चय होता है उसको 'सम्यग्ज्ञान' माना गया है ।' व्याख्या - प्रमाणोके प्रत्यक्ष-परोक्षादिके विकल्पसे अनेक भेद है । नयोंके भी निश्चय व्यवहार, द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक और नैगम - सग्रहादिके विकल्पसे अनेक भेद हैं। नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे निक्षेप चार प्रकारके है । ये सब प्रमारणादिक पदार्थो की यथार्थताके निश्चायक हैं। इनके द्वारा पदार्थो के स्वरूपादि निर्धारण अथवा निश्चयको सम्यग्ज्ञान कहते हैं । इन प्रमाणो, नयो तथा निक्षेपोके भेद-प्रभेदो और उनके स्वरूपादिकी जानकारीके लिये तत्त्वार्थ सूत्रके टीकादि-ग्रन्थो तथा अन्य तत्त्वज्ञान विषयक जैनग्रन्थोको देखना चाहिये | L सम्यग्ज्ञानका लक्षण प्रमाण -नय-निक्षेपैर्यो याथात्म्येन निश्चयः । # , सम्यक् चारित्रका लक्षण चेतसा वचसा तन्वा कृताऽनुमत- कारितैः । पाप-क्रियाणां यत्याग. सच्चारित्रमुषन्ति तत् ॥ २७॥ 7 'मनसे, वचनसे, कायसे कृत-कारित अनुमोदनाके द्वारा जो पापरूप क्रियाओं का त्याग है उसको 'सम्यक्चारित्र' कहते हैं ।' व्याख्या -- पापरूप कियाओके करने का मनसे त्याग, वचनसे त्याग तथा कायसे त्याग, पापरूप क्रियाओके करानेका मनसे त्याग, वचनसे त्याग तथा कायसे त्याग, पापरूप क्रियाओंके दूसरो
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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