SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५ २०५ विषय-सूची ध्यानका प्रधानकारण गुरू- मोक्षसुख-विषयक शकापदेशादि-चतुष्टय १८४ | समाधान २०० प्रदर्शित ध्यान-फलसे ध्यान- सोक्ष-सुख-लक्षण २०१ फलको ऐहिक ही माननेका सासारिक-सुखका लक्षण २०२ निषेध १८५ / इन्द्रियविषयोसे सुख मानना ऐहिक-फलार्थियोका ध्यान । मोहका माहात्म्य २०३ आर्त या रौद्र मुक्तात्माओके सुखकी तुलनामे वह तत्त्वज्ञान जो शुक्ल ध्यान चक्रियो और देवोका सुख रूप है १८७ नगण्य २०४ शुक्लध्यानका स्वरूप १८७ पुरुषार्थोमे उत्तम मोक्ष सुमुक्षुको नित्य ध्यानाभ्यास- और उसका अधिकारी की प्रेरणा १८८ । स्याद्वादी उत्कृष्ठध्यानाभ्यासका फल १८६ | एकान्तवादियोके बन्धादिमोक्षका स्वरूप और उसका चतुष्टय नही बनता २०७ फल १६१ / बन्धादि-चतुष्टयके न बननेका मुक्तात्माका क्षणभरमे लोका- सहेतुक स्पष्टीकरण २०८ ग्रगमन १६२ ग्रन्थमे ध्यानके विस्तृत वर्णनमुक्तात्माके आकारका सहेतुक का हेतु निर्देश १६४ ध्यानविषयकी गुरुता और प्रक्षीणकर्माको स्वरूपमे अपनी लघुता २१३ अवस्थिति और उसका रचनामे स्खलनके लिये श्रुतस्पष्टीकरण देवतासे क्षमायाचना २१३ सब जीवोका स्वरूप १६७ भव्यजीवोको आशीर्वाद २१४ स्वरूपस्थितिकी दृष्टान्तद्वारा ग्रन्थकार-प्रशस्ति स्पष्टता अन्त्य-मगल स्वात्मस्थितिके स्वरूपका भास्यका अन्त्य-मगल और स्पष्टीकरण १६६ | प्रशस्ति २२३ २१५ १६८ २१७
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy