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तत्त्वानुशासन श्रौती-भावनाका रूप १४० । आत्मदर्शनके दो फलोका श्रौतो-भावनाका उपसहार १४६ स्पष्टी-करण
१६१ चिन्ताका अभाव तुच्छ न स्वात्मामे स्थिरताकी वृद्धिके
होकर स्वसवेदनरूप है १५० साथ समाधि-प्रयत्योका स्वसवेदनका लक्षण १५१
। प्रस्फुटन
१६१ स्वसवेदनका कोई करणान्तर
स्वात्मदर्शन धर्म्य-शुक्ल दोनो नही होता
धानोका ध्येय हैं १६२ स्वात्माके द्वारा सवेद्य आत्म- प्रस्तुतध्येयके ध्यानकी दु शक्यता स्वरूप
और उसके अभ्यासकी प्रेरणा १६३ इन्द्रिय-ज्ञान तथा मनके द्वारा
अभ्यासका क्रम-निर्देश आत्मा दृश्य नही १५३
१६४
साकेतिक गूढार्थका स्पष्टीइन्द्रिय-मनका व्यापार रुकनेपर ।
करण स्वसवित्ति-द्वारा आत्मदर्शन १५४ |
स्वात्माके अहंदुरूपसे ध्यानमे स्वसवित्तिका स्पष्टीकरण १५५ भ्रान्तिकी आशका १६६ समाधिमे आत्माको ज्ञानस्वरूप भ्रान्तिकी शकाका समाधान २७० अनुभत्र न करनेवाला योगी अर्हदुरुपध्यानको भ्रान्त मानने आत्मध्यानी नही १५५
पर ध्यानफल नही बनता १७३ आत्मानुभवका फल १५६
ध्यानफलका स्पष्टीकरण १७४ स्वरूपनिष्ठ-योगी एकोनताको | ध्यानद्वारा कार्यसिद्धिका । नही छोडता
१५७ व्यापक सिद्धान्त १७६ स्वात्मलान-योगीका वाह्यपदा- वैसे कुछ ध्यानो और उनके थोंका कुछ भी प्रतिभास नही । फल-का निर्देश
१७६ होता
१५७ / तद्देवतामय ध्यानके फलका अन्यशून्य भी आत्मा आत्मस्व- उपसहार
१८० रूपसे शून्य नही होता १५८ | समरसीभावकी सफलतासे मुक्तिके लिये नैरात्म्यावत- उक्त भ्रान्तिका निरसन १८१ दर्शनकी उक्तिका स्पष्टीकरण १५८ ध्यानके परिवारकी सूचना १५२ एकाग्रतासे आत्म-दर्शनका लौकिकादि सारी फलप्राप्तिका । फल
१६० | प्रधान कारण ध्यान १८३