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________________ विषय-सूची ६२ १२७ भेद १२९ ध्याताको परिकर्मपूर्वक ध्यान- । आत्मद्रव्यके ध्यानमे पचपरमे__ की प्रेरणा ८७ ष्ठिके ध्यानकी प्रधानता १२१ विवक्षित-परिकर्मका स्वरूप ८८ | सिद्धात्मक-ध्येयका स्वरूप १२३ सुखासन-विषयक विशेषविधिकी अर्हदात्मक-ध्येयका स्वरूप १२३ व्यवस्था अर्हन्तदेवके ध्यानका फल १२५ नयदृष्टिसे ध्यानके दो भेद ६४ आचार्य-उपाध्याय-साधु-ध्येयनिश्चयकी अभिन्न, व्यवहारकी का स्वरूप भिन्न सज्ञा और भिन्न प्रकारान्तरसे ध्येयके द्रव्यध्यानाभ्यासकी उपयोगिता ६५ भावरूप दो ही भेद १२८ भिन्नरूप धर्म्यध्यानके चार द्रव्यध्येय और भावध्येयका ध्येयोकी सूचना ६६ / स्वरूप १२६ ध्येयके नाम-स्थापनादि चार द्रव्यध्येयके स्वरूपका स्पष्टी करण नाम-स्थापनादि ध्येयोका द्रव्यध्येयको पिण्डस्थध्येयकी सक्षिप्त रूप ६६ सज्ञा १३० नामध्येयका निरूपण १०० भावध्येयका स्पष्टीकरण १३१ (अनेक मत्रो-यत्रोके रूपमे) समरसीभाव और समाधिका गणधरवलयका स्वरूप १०६ स्वरूप १३२ नामध्येयका उपसहार द्विविध-ध्येयके कथनका उपस्थापना-ध्येय १११ सहार द्रव्यध्येय ११२ याथात्म्य-तत्त्व-स्वरूप माध्यस्थ्यके पर्यायनाम १३४ भावध्येय परमेष्ठियोके ध्याये जानेपर द्रव्यके छह भेद और उनमे सब कुछ ध्यात ध्येयतम आत्मा निश्चय ध्यानका निरूपण १३७ छहो द्रव्योका सक्षिप्त सार ११७ | श्रौती-भावनाका अवलम्बन न आत्मद्रव्य सर्वाधिक ध्येय लेनेसे हानि १३६ क्यो? १२० । श्रौती- मावनाकी दृष्टि १३६ ११० ।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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