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________________ तत्त्वानुशासन इस ग्रन्थके अध्ययनादिमे सुरुचिपूर्वक प्रवृत्त हो सकेंगे, ऐसी मेरी दृढ धारणा है। मेरा विचार था कि मैं इस प्रस्तावनामें अध्यात्म-योग-विद्या एव मन्त्रशास्त्रके विपयमे कुछ विशेष प्रकाश डालू, परन्तु एक तो मन्त्रशास्त्रका अध्ययन अभी तक पूरा नहीं हो पाया, दूसरे भाष्यके प्रकाशनमे आशातीत विलम्ब हो गया और उसे और अधिक समय तक रोके रखना उचित नही जंचा, क्योकि जीवनका कोई भरोसा नही हैछियासी वर्पके लगभग अवस्था हो चुकी है। प्रत मैं अपने उस विचारको इस समय यहाँ छोड रहा हूँ। यदि जीवन शेष रहा, शक्ति बनी रही और भावीने साथ दिया तो मैं अगले ग्रन्थसस्करणके अवसर पर या उससे पहले ही 'अध्यात्म-योग-विद्या' नामक स्वतन्त्र निबन्धके द्वारा उसे पूर्ण करनेका पूरा प्रयत्न करूंगा। अध्यात्मयोगके सिवा शेष जीवनका अब दूसरा कोई लक्ष्य है भी नहीं । २३ मई १९६३ ज्येष्ठ कृ० १५ गुरु स० २०२० दिल्ली जुगलकिशोर मुख्तार
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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