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________________ तत्वानुशासन ध्यान (समाधि) के चमत्कारो तथा अतिशयोसे जान पडता है। इस प्रकार सक्षेपमे यह गुजराती अनुवाद की स्थिति है। अनुवादमे अनेक त्रुटियोके रहते हुए भी यह अनुवाद प्रथम हिन्दी अनुवादकी अपेक्षा अच्छा है। ___ यहां पर मैं इतना और भी प्रकट कर देना चाहता हूँ कि मूलग्रन्थमे कोई अध्याय विभाग नहीं है; परन्तु इस अनुवादमें अनुवादकने उसे स्वय अपनी तरफसे प्रस्तुत किया है । सारे ग्रन्थको आठ अध्यायोंमे बांटा है, जिनके नाम हैं-१ सारभूत चतुष्टय, २ मोक्षका प्रधान कारण ध्यान, ३ ध्यानके लिये सामग्री और प्रेरणा ४ पराश्रय ध्यान, ५ स्वात्मावलम्वन ध्यान, ६ अहंका अभेद प्रणिधान और ध्यानके फल, ७ मुक्तात्माका स्वरूप, ८ उपसहार । प्रथम अध्यायमे १ से ३२, द्वितीयमें ३३ से ७४ तृतीयमे ७५ से ८६, चतुर्थमे ६० से १४०, पचममे १४१ से १८२, षष्ठमे १८३ से २३०, सप्तममे २३१ से २५१ और अष्टममे शेष २५२ से २५६ तकके पद्योको रक्खा है ! अध्यायोका यह नामकरण और उसमे पद्योका उक्त विभाजन कहां तक ठीक हुआ है, इसे विज्ञपाठक स्वय समझ सकते हैं। ___ मेरी रायमें प्रथम अध्यायका नाम 'हेयोपादेयतत्त्व, द्वितीयका द्विविध-मोक्षमार्गकी ध्यानसे सिद्धि' और छठेका'आत्माका अहंद्रूप ध्यान' होना चाहिये था। पांचवें अध्यायके नाममे 'और श्रौतीभावना' इतना और जोड दिया जाता तो ज्यादा अच्छा रहता। तृतीय अध्यायके अन्तमे ८९वें पद्यको रक्खा गया है, उसमे जिस परिकर्मके करनेकी प्रेरणा की गई है उसके निर्देशक ६० से १५ तकके छह पद्योको भी उसी अध्यायके अन्त मे रखना चाहिये था, उन्हे चतुर्थ अध्यायके प्रारम्भमे देना उचित नही ज्ञान पडता। चतुर्थ अध्यायका प्रारम्भ पद्य ६६ से होना चाहिये था। इसी तरह पचम अध्यायके अन्तिम पद्य १८२ मे ध्यानके जिस अभ्यासकी प्रेरणा की गई है वह अभ्यास-क्रम पद्य १८३से १८७
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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