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________________ तत्त्वानुशासन __ वस्तुत: ध्यान-विषयक खास तथा महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करनेके लिए यह एक बहुत ही उपयोगी ग्रन्थ है। नये ढंगसे किये गये सम्पादन, विस्तत हिन्दी भाष्य प्रस्तावना और परिशिष्टोसे ग्रन्थ और अधिक उपादेय तथा पठनीय बन गया है । ग्रन्थकी प्रस्तावनामे कर्तृत्व-सम्बन्धी अनेक भूल-भ्रान्तियोको, जो अरसेसे चली आ रही थी, सप्रमाण दूर करके उसके कर्ताका निर्णय किया गया है। सस्कृत-विश्वविद्यालय वाराणसीके भूतपूर्व कुलपति डा० मङ्गलदेवजी एम० ए०, डी० फिल० ने ग्रन्थ पर अपना महत्वका प्राक्कथन लिखा है । इसके लिए हम उनके आभारी है और उन्हे धन्यवाद देते है। हमें आशा है प्रस्तुत सस्करण एक बडी भारी मांगको पूरी करेगा तथा अध्यात्म-प्रेमी मुनियो, त्यागियो, विद्वानो और सद्गृहस्थोको ऐसे ग्रन्थोके अध्ययन-मनन करनेकी रुचि उत्पन्न करके उन्हे विपुल आध्यात्मिक भोजन प्रदान करेगा। हमे प्रसन्नता है कि 'युगवीर-निबन्धावली के प्रकाशनके तुरन्त बाद ही वीरसेवामन्दिर-ट्रस्ट अपने पाठकोकी सेवामे इस सुन्दर ग्रन्थको उपस्थित करनेमे समर्थ हो सका है। यद्यपि प्रेस आदिकी कितनी ही कठिनाइयां एव बाधाएँ आई है किन्तु मुख्तारश्रीके अदम्य उत्साह, धैर्य एव परिश्रमसे अन्तको वे दूर हो गई और ग्रन्थ अपने वर्तमान रूपमे सामने प्रस्तुत है। इतना ही नही, किन्तु इस महान् ग्रन्थरत्नको नि शुल्क वितरित कराने के अपने प्रयत्नमें भी वे सफल हो सके हैं, यह और भी प्रसन्नताकी बात है। इस सत्कार्यमे जिनका सहयोग प्राप्त हुआ है वे सभी धन्यवादके पात्र हैं। हन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी) दरबारीलाल जन, कोठिया ३० सत म्बर १९६३ (न्यायाचार्य, एम० ए०) मंत्री, वीरसेवामन्दिर-ट्रस्ट
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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