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________________ प्रकाशकीय आचार्य रामसेन-द्वारा रचित प्रस्तुत तत्त्वानुशासन नामक ग्रन्थ एक बडा ही सुन्दर-सुव्यवस्थित पुरातन ध्यानशास्त्र है, जिसमे निश्चय और व्यवहार दोनो प्रकारका मोक्ष-मार्ग ध्यानसे सिद्ध होता है इस बातको स्पष्ट करते हुए, ध्यानका और उसके द्वारा आत्माके विकासका एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम उपस्थित किया गया है। ___ यद्यपि यह ग्रन्थ इससे पूर्व भी एक-दो जगहसे मूल रूपमे तथा अनुवादके साथ, ग्रन्थ-कर्ताके गलत नामको लिये हुए, प्रकाशित हो चुका है किन्तु जैसे शुद्ध और आधुनिक सम्पादनसे युक्त सस्करणकी आवश्यकता थी, उसकी पूर्ति उक्त सस्करणोसे नही हो सकी। इस आवश्यकता तथा ग्रन्थके महत्वको अनुभव करके सुविख्यात साहित्यकार और अनुभवी विद्वान् वयोवृद्ध प० जुगलकिशोरजी मुख्तारने इसका सशोधन, सम्पादन और हिन्दी भाष्य तैयार किया, साथ ही इसपर विस्तृत प्रस्तावना भी लिखी। ग्रन्थको सर्वाङ्गपूर्ण बनानेके लिए उन्होने कई वर्षों तक इसका गहरा अध्ययन और मनन किया । लगभग तीन वर्ष पूर्व पूज्यश्री मुनिराज समन्तभद्रजीके निकट बाहुवली (कोल्हापुर) जाकर कई दिन तक ग्रन्थके विषयोपर विचार-विमर्श किया एव ध्यानशतक, आर्ष, ज्ञानार्णव, योगशास्त्रादि दूसरे ग्रन्थोसे तथा कुछ विद्वानोसे भी विषयको स्पष्ट किया है और इस तरह उनके कठोर परिश्रम एव अध्यवसायके बाद अब यह महत्वपूर्ण ग्रन्थ सुन्दररूपमे वीरसेवामन्दिर-ट्रस्टकी ओरसे प्रकाशित किया जा रहा है ।
SR No.010640
Book TitleTattvanushasan Namak Dhyanshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages359
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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