________________
चिह्नत
जिह्वा
( ६६ )
चिन्ह
जिव्हा
मह्यं -- मय्हं के सादृश्य के आधार पर तुभ्यं का भी पालि प्रतिरूप तुम्हं हो गया है।
सुस्नात
विस्मय
(२) ऊष्म + अनुनासिक -- इस संयोग - दशा में भी व्यंजन - विपर्यय होता है । पहले ऊष्म का ह में परिवर्तन होता है और फिर दोनों का विपर्यय । इस प्रकार ‘शून्', 'श्म्', 'ष्ण्', 'ष्म्', 'स्न्' 'स्म्' क्रमशः 'व्ह', 'म्ह', 'व्ह' 'म्ह', 'न्ह्' म्ह, हो जाते हैं-
प्रश्न
पञ्ह (अर्द्धमागधी पण्ह )
अश्मना (पत्थर के द्वारा )
अम्हना
उष्णा (गर्मी)
उहा
कृष्ण
कण्ह
तृष्णा
तहा
ग्रीष्म
गिम्ह
सुन्हा
विम्य
(३) 'क्षण', 'क्ष्म्', 'त्स्न्' - इन संयुक्त व्यंजनों के स्वरूप विपर्यय के
कारण क्रमशः 'ण्ह', 'मह', 'न्ह', हो जाते हैं । इस विकास का क्रम यह है कि पहले 'क्षण', 'क्ष्म्', 'त्स्न्', के क्रमशः रूप 'पुण्', 'ष्म् 'स्न्' होते हैं और फिर इनका विपर्यय हो कर उपर्युक्त नियम (२) के अनुसार इनके क्रमश: 'व्ह', म्ह, " 'न्ह' रूप बनते हैं-
लक्ष्ण (सुन्दर, कोमल )
पक्ष्म ( पलक )
ज्योत्स्ना
सह
पम्ह
जुण्हा ( पहले 'जुन्हा' रूप बना और फिर न का मूर्द्धन्य होकर 'जुन्हा' हो गया )
(२) व्यंजनों के उच्चारण-स्थान में परिवर्तन-
(१) दन्त्य स्पर्श +य् -- इस संयोग- दशा मे दन्त्य स्पर्शो का तालव्यी
करण हो जाता है-