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( ६७ )
सत्य
छिद्यते
सच्च छिज्जति
जच्चा
जात्या ‘ण्य' संयुक्त व्यंजनों में भी
कर्मण्य
कम्मञ्च
(२) संस्कृत तालव्य संयुक्त व्यंजनों के स्थान पर पालि में कहीं कहीं कंठ्य
संयुक्त व्यंजन हो जाते हैं, कहीं कहीं मूर्धन्य संयुक्त व्यंजन और कहीं कहीं दन्त्य संयुक्त व्यंजन। (अ) तालव्य के स्थान पर कंठ्य भैषज्य
भिसक्क (भेसज्ज भी) (आ) तालव्य के स्थान पर मर्द्धन्य आज्ञा
आणा (इ) तालव्य के स्थान पर दन्य उच्छिष्ठ
उत्तिट्ठ (३) मध्यस्थित दन्त्य संयुक्त व्यंजनों का मूर्द्धन्यीकरण । यह एक महत्त्व
पूर्ण परिवर्तन है। इस परिवर्तन के कारण 'त' 'र्थ ''ई' 'ई' क्रमशः ‘ट्ट' 'टठ्', 'ड्ड', 'ढढ्' हो जाते हैंआर्त
अट्ट कैवर्त वर्धते
वढ्ढति प्रस्थाय
पठाय कूटस्थ
कूटट्ठ (४) प्राण-ध्वनि का आगमन और लोपआगमन, यथा
शृङगाटक (चौराहा) पिप्पल
पिफ्फल लोप, यथा
केवट्ट
सिंघाटक,
लोत्र
लोद्द
मूर्च्छति ।
मुच्चति