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तक्र
शुक्ल
(३) स्पर्श + अन्तःस्थ में,
शक्य
उच्यते
प्रज्वलति
( ४ ) ऊष्म + अस्तःस्थ में, यथा
मिश्र
अवश्यम्
अश्व
श्लेष्मन्
यथा
(५) अनुनासिक - अन्तःस्थ में, यथा
किण्व
रम्य
कल्य
बिल्व
तीव्र
(२) व्यंजन - विपर्यय
६५ )
सह्य
मह्यं
( सम्भव )
तक्क
सुक्क
सक्क
वुच्चति
पज्जलति
मिस्स
अवस्सं
अस्स
सेम्ह
(६) व्य्, व् जैसे संयुक्त व्यंजनों में, जो ब्बू हो जाते हैं,
परिव्यय
परिब्बय
तिब्व
किण्ण
रम्म
कल्ल
बिल्ल
(१) ह + अनुनासिक, या 'य्', या 'व्' - इस व्यंजन-सयोग में विपयं होता है, अर्थात् 'हण्'' 'हन्', 'हम', 'हय्', 'हव', इन संयुक्त व्यंजनों के क्रमशः 'ह', न्ह, 'म्ह' 'व्ह', 'वह' रूप हो जाते हैं...
पूर्वाह्ण
अपराह्ण
जिह्म,
पुब्वण्ह
अपरण्ह
जिम्ह
मय्ह
महं