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(६) तीन अघोष ऊष्म
विसर्जनीय या विसर्ग : जिह्वामूलीय'
उपध्मानीय२ वैदिक ध्वनि-समूह ही प्रायः संस्कृत में उपलब्ध होता है। कुछ विशेष परिवर्तन इस प्रकार हैं--(१)ल, ल्ह, जिह्वामूलीय तथा उपध्मानीय ध्वनियों का प्रयोग संस्कृत में नहीं मिलता (२) कुछ स्वरों और व्यंजनों के उच्चारणों में भी परिवर्तन हुआ है। इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रख कर अब हम पालि के ध्वनिसमूह पर विचार करें। पालि का ध्वनि-समूह इस प्रकार है-- स्वर
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ह्रस्व ए, ए, ह्रस्व ओ, ओ व्यंजन
कंठ्य -- क् ख् ग् घ् ङ.. तालव्य -- च, छ, ज, झ, ञ मूर्द्धन्य -- ट, ठ, ड्, द, ण, ल, ल्ह दन्त्य -- त्, थ्, द्, ध, न् ओष्ठ्य -- प, फ, ब, भ, म् अन्तःस्थ -- य, र, ल, व् ऊष्म -- स्
प्राणध्वनि - ह. संस्कृत से मिलान करने पर उपर्युक्त पालि ध्वनि-समूह में ये विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं--(१)ऋ,ऋ,ल, ऐ,औ स्वरों का प्रयोग पालि भाषा में नहीं मिलता (२)पालि में दो नये स्वर ह्रस्व ए और ह्रस्व ओ मिलते हैं, (३) विसर्ग पालि में नहीं मिलता (४) श्, ष् पालि में नहीं मिलते, (५) ल, ल्ह, व्यंजनों का प्रयोग पालि में संस्कृत से अधिक होता है। दो स्वरों के बीच में आने वाले ड का १. क् से पहले आने वाला विसर्ग। 'ततः कि' में विसर्ग की ध्वनि इसका
उदाहरण है। २. 'ए' से पहले आने वाला विसर्ग। 'पुनः पुनः' में प्रथम विसर्ग की ध्वनि
इसका उदाहरण है।
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