________________
( ३५ ) प्राकृत के सब रूपों में 'र' सुरक्षित ही मिलता हो, ऐसी भी बात नहीं है । शब्द के मध्य में स्थित व्यंजन का सुरक्षित बने रहना प्राचीनता का लक्षण अवश्य है, किन्तु पैशाची के साथ पालि के घनिष्ठ सम्बन्ध का द्योतक नहीं। घोष स्पर्शों के स्थान पर अघोष स्पर्श हो जाना पालि में यत्र-तत्र ही अनियमित रूप से पाया जाता है और पैशाची में भी यह नियम अनिवार्य नहीं है। अतः पैशाची प्राकृत के साम्य के आधार पर हम पालि के स्वरूप के सम्बन्ध में कोई निश्चित सिद्धान्त स्थापित नहीं कर सकते।
उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि किसी एक प्राकृत या उसके प्राचीन स्वरूप से पालि को सम्बद्ध कर देना कितना एकांगी और भ्रामक सिद्धान्त है। वास्तव में तथ्य यही है कि पालि एक मिश्रित, साहित्यिक भाषा है जिसमें अनेक बोलियों के संमिश्रण के चिन्ह मिलते हैं। उसके ध्वनि-समूह का विस्तृत विवरण, प्राकृतों के साथ उसके सम्बन्ध को, जिसे हमने अभी तक अत्यन्त संक्षिप्त रूप से ही निर्दिष्ट किया है, अधिक स्पष्टता से व्यक्त करेगा। पालि के ध्वनि-समूह का परिचय __पालि के ध्वनि-समूह को समझने के लिये पहले वैदिक और संस्कृत भाषा के ध्वनि-समूह को समझ लेना आवश्यक है। वैदिक ध्वनि-समूह में ५२ ध्वनियाँ थीं, जिनमें १३ स्वर थे और ३९ व्यंजन । इनका वर्गीकरण इस प्रकार हैस्वर--
(१) नौ मूल स्वर : अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, , ऋ, ऋ ल,
(२) चार संयुक्त स्वर : ए, ऐ, ओ, औ व्यंजन(१) सत्ताईस स्पर्श व्यंजन -
कंठ्य क्, ख्, ग, घ, ङ् तालव्य च, छ, ज, झ, ञ मूर्धन्य --ट्, , , , ण, ल, ल्ह दन्त्य -त्, थ्, द्, , न्
ओप्ठ्य -प्, फ, ब, भ्, म् (२) चार अन्तःस्थ
-~~य्, र, ल, व् (३) तीन ऊप्म
-- श् ष् स् (५) अनुनासिक
-- (अनुस्वार)