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करते है किन्तु वेदनाओं के त्याग को प्रजापित नहीं करते (३) कामों के त्याग को भी, रूबों के त्याग को भी और वेदनाओं के त्याग को भी प्रज्ञापित करते है। महानाम ! लोक में यही तीन प्रकार के शास्ता है।" अंगुत्तर-निकाय के चतुक्कनिपात के केम-पुत्निय-मत्त में हम बद्धके बुद्धिवादी दृष्टिकोण को स्पष्टतः देखते हैं। कोसल-प्रदेश में चारिका करते करते भगवान् केसपुन नामक निगम (कस्बे) में, जो कालाम नामक क्षत्रियों का निवास स्थान था, पहुँचते हैं। कालाम क्षत्रिय भगवान् को हाथ जोड़-जोड़ कर एक ओर चुपचाप बैठ जाते हैं। वे भगवान् से विनम्रता के माथ पूछते है “भन्ते ! कोई-कोई श्रमण-ब्राह्मण केमपुत्त में आते है। वे अपने ही मत की प्रशंसा करते हैं, दूसरे के मत की निन्दा करते हैं, उसे छुड़वाते हैं। भन्ते ! दूसरे भी कोई-कोई श्रमण-ब्राह्मण केमपूत्त में आते हैं और वे भी वैमा ही करते है। तब भन्ते । हमको संगय अवश्य होता है, कौन इन आप श्रमण-ब्राह्मणों में मच कहता है, कौन झूठ ?” कालामों का प्रश्न ऐमा है जो दुनिया के धार्मिक इतिहास में हर युग में और हर व्यक्ति के हृदय में आता है। अतः कालामों के प्रश्न का महत्त्व सब काल के मनप्य के लिये ममान रूप से है। भगवान ने जो उत्तर दिया है, वह उसमे भी अधिक विश्वजनीन महत्ता लिये हुए है। भगवान् कहते हैं “कालामो ! तुम्हारा संशय ठीक है। मंगय-योग्य स्थान में ही तुम्हें मंशय उत्पन्न हआ है। आओ कालामो ! मन तुम अनुश्रव मे विश्वास करो, मत परम्परा से विश्वास करो। 'यह ऐमा ही है' इम मे भी तुम मत विश्वास करो। कालामो ! मान्य गास्त्र की अनुकलता (पिटक-मम्प्रदाय) मे भी तुम विश्वास मत करो। मत तर्क मे, मत न्याय-हेतु मे, मत वक्ता के आकार के विचार मे, मत अपने चिर-धारित विचार के होने मे, मत वक्ता के भव्य रूप होने से, मत 'श्रमण हमारा गुरु है' इस भावना से, कालामो ! मत इन मव कारणों से तुम विश्वास कगे! बल्कि कालामो ! जब तुम अपने ही आप जानो कि ये धर्म अकुशल हैं, ये धर्म सदोष है, ये धर्म विज-निन्दित हैं, ये ग्रहण करने पर अहित, दुःख के लिये होंगे, तो कालामो! तुम उन्हें छोड़ देना। . . . . . . इसी प्रकार कालामो ! जब तुम अपने ही आप जानो कि ये धर्म कुशल हैं, ये धर्म निर्दोष है, ये धर्म विज्ञ-प्रशंसित हैं, ये ग्रहण कर लेने पर मुख और कल्याण के लिये होंगे, तो कालामो ! तुम उन्हें प्राप्त कर विहरो।" इस प्रकार पात्रता की उपयुक्न भमि तैयार कर बाद में तथागत कालामों को विज्ञापित करते है "तो क्या मानते हो कालामो ! पृरुप के भीतर