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________________ ( १८७ ) उत्पन्न हुआ लोभ (राग) हित के लिये होता है या अहित के लिये ?” “अहित के लिये, भन्ते !” “पुरुष के भीतर उत्पत्र हुआ द्वेष . . . . ..हित के लिये या अहित के लिये ?” “अहित के लिये, भन्ते।" "मोह?' “अहित के लिये, भन्ते !" "तो क्या मानते हो कालामो ! ये धर्म (गग, द्वेप, मोह) मदोष हैं या निर्दोष ?" "सदोष, भन्ते !" "प्राप्त करने पर अहित के लिये, दुःख के लिये हैं या नहीं?" “ग्रहण करने पर भन्ले ! अहित के लिये हैं, ऐसा हमें लगता है।'' बुद्ध की उठाने वाली आदेश ना होती है "तो कालामो ! तुम इन्हें छोड़ दो।" इसी प्रकार अ-लोभ, अद्वेष, अमोह को हित, दुख का कारण समझा कर भगवान् कालामों को उन्हें ग्रहण करने की प्रेरणा करते हैं। किमी भी विश्वास को मानने या न मानने की अपेक्षा के बिना ही स्वयं सदाचार का जीवन सम्पूर्ण आश्वासनों से किस प्रकार आश्वस्त है, इसे समझाते हुए भगवान कहते हैं, “कालामो ! जो आर्य माधक (श्रावक) अ-वैर-चिन, अ-व्यापन्न-चिन, अ-संक्लिष्ट-चित्त (विशद्धि-चित्त) है, उमको इमी जन्म में चार आश्वासन (आश्वासन) मिले रहते है, (१) यदि परलोक है, यदि सकृत-दुष्कृत कर्मो का फल है, तो निश्चय ही मै काया छोड, मरने के बाद, सुगति, स्वर्ग-लोक में उत्पन्न होऊँगा, यह उसे प्रथम आश्वास प्राप्त रहता है। (२) यदि परलोक नहीं है, यदि सुकृत-दुष्कृत कर्मों का फल नहीं है. तो इमी जन्म में, इसी समय, अ-बैग्-चित्त, अ-व्यापन्न-चित्त, अ-संक्लिप्टचिन, अपने को रखता हूँ, यह उसको द्वितीय आश्वास प्राप्त रहता है। (३) यदि काम करते पाप किया जाये, तो भी में किसी का बुरा नहीं चाहता, बिना किये फिर पाप-कर्म मुझे क्यों दुःख पहुंचायेगा। यह उमे तीसरा आश्वास प्राप्त रहता है। (४) याद करते हुए पाप न किया जाय, तो इस समय मैं दोनों से ही मुक्त अपने को देखता है। यह उमे चौथा आश्वास प्राप्त हुआ रहता है।" यह उपदेश न केवल बद्ध के नैतिक आदर्शवाद और विचार-स्वातन्त्र का बल्कि भगवान् की उपदेश-प्रणाली का भी अच्छा सूचक है। अंगत्तर-निकाय की एक बड़ी विशेषता यह है कि वहाँ भिक्षु-धर्म (भिक्ख-विनय) के साथ-साथ गृहस्थ-धर्म (गिहि-विनय) का भी उपदेश दिया गया है। चतुक्क-निपात के वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त में भगवान् मथग और वेरंजा के बीच के रास्ते में गृहस्थों को विज्ञापित करते हुए दिखाई देते है, “गृहपतियो ! चार प्रकार के मंवास होते है। कौन से चार ? (१) गव शव के साथ संवास करता है (२) गव देवी के साथ मंवाम करता है (३) देव शव के माथ संवाम करता है (४)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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