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( १८५ ) arta प्रसन्नों में कात्यायनी अग्र है । ( ७४) विश्वामिकाओं में नकुल-माता गृहपत्नी अग्र है । ( ७५) अनुश्रव प्रसन्नों में कुरर घर में व्याही काली उपासिका अग्र है । " भगवान बुद्ध देव के प्रधान गिप्य - गिप्याओं का यह विवरण, जिसमें उनके भिक्षु, भिक्षुणी, उपासक और उपानिका सभी कोटि के पुरुष और स्त्री माधक-साधिकाओं के नाम है. बद्ध-धर्म और संघ के इतिहास की दृष्टि से कितना महत्त्वपूर्ण है. इसके कहने की आवश्यकता नहीं । धर्म, साहित्य और इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण इस प्रकार की प्रभुत सामग्री अंगुत्तरनिकाय में भरी पड़ी है। दुक निपात के इस सुन्दर भाव-पूर्ण बुद्ध वचन को लीजिये, "हे मे भिक्खवे असनिया फलन्तिया न मन्तसन्ति । कतमे हे ? भिक्खू च खीणामवो, मीहोच मिगराजा । इमे खो भिवखवे अमनिया फ्लन्तिया न मन्नमन्तीति ।" अर्थात् “भिक्षुओ ! बिजली कड़कने पर दो ही प्राणी नहीं चौंक पड़ते हैं। कौन से दो ? श्रीणाम्रव भिक्षु और मृगराज सिंह | भिक्षुओ ! यही दो बिजली कड़कने पर चौंक नहीं पड़ने ।" इस प्रकार के अर्थ- गर्भित उपदेश जिनकी मौलिक्ता और स्वभाविकता में उनका संख्यावद्ध विन्यास को क्षति नही पहुंचाता, अंगुत्तर निकाय में भरे पड़े हूँ । तिक-निपान के भरंडुमुन में हम भगवान् को बुद्धत्त्व प्राप्ति के बाद अपने पन्द्रहवें वर्षा - वाम में, कपिलवस्तु में विचरते देखते हैं । महानाम वाक्य उनका सत्कार करता है । भगवान् नगर मे बाहर भरंड - कालाम नामक अपने पूर्व म ब्रह्मचारी के आश्रम में एक रात भर ठहरते हैं। रात के वीतने पर महानाम शाक्य फिर उनकी सेवा में उपस्थित होता है। भगवान उसे उपदेश देते है " महानाम ! लोक में तीन प्रकार के शास्ता विद्यमान है। कौन से तीन ? ( १ ) यहाँ एक शास्ता महानाम ! कामों के त्याग का उपदेश करते हैं, किन्तु रूपों और वेदनाओं के त्याग को प्रज्ञापित नहीं करते ( २ ) कामों और रूपों के त्याग का उपदेश
१. बुद्ध चर्या, पृष्ठ ४६७-४७२ ( कुछ अल्प शाब्दिक परिवर्तनों के साथ)
२. "क्षीणाaa भिक्षु नहीं चौंक पड़ता है क्योंकि उसका 'अहंभाव ' बिलकुल निरुद्ध हुआ रहता है । मृगराज सिंह नहीं चौंक पड़ता है, क्योंकि उसका 'अहंभाव ' अत्यन्त प्रबल होता है; चौंकने के बदले वह और गरज उठता है कि कौन दूसरा उसकी बराबरी करने आ रहा है । 'भिक्षु जगतीश काश्यपः पालि महाव्याकरण, पृष्ठ चवालीस ( वस्तुकथा ) में |
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