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मनुस्मृति को सूक्तियां
दो रो तिरासी १८. गुरुजनो का परिवाद करने वाला मर कर गधा होता है और निन्दा
करने वाला कुत्ता। १६. इन्द्रियसमूह बड़ा बलवान होता है, अतः वह कभी-कभी विद्वान सापक
को भी अपनी और खोच लेता है। २०. आचार्य ब्रह्मा को प्रतिकृति है, पिता प्रजापति की, माता पृथिवी की
तथा भ्राता तो साक्षात् अपनी ही प्रतिकृति है ।
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चाडाल से भी प्ठ धर्म ग्रहण कर लेना चाहिए और योग्य स्त्री को नोच कुल से भी प्राप्त कर लेना चाहिए । विष से भी अमृत, वालक से भी सुभाषित, शत्रु से भी श्रेष्ठचरित्र एव अपवित्र स्थल से भी स्वर्ण ग्रहण कर लेना चाहिए ।
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२३. अपने शरीर के स्वास्थ्य को क्षति न पहुँचाते हुए धन का अर्जन करना
चाहिए। २४. जहाँ नारी की पूजा (सम्मान) होती है, वहां देवता (दिव्य ऋद्धि-सिठियां)
निवास करते हैं । २५. जिस कुल में अपमान आदि के कारण कुलबधुएं शोकाकुल रहती है,
वह कुल गोघ्र ही नष्ट हो जाता है । २६. प्रतिथिसत्कार से धन, यश, आयुष्य एवं स्वर्ग की प्राप्ति होती है ।
२७. सुख की इच्छा रखने वाले को संयम से रहना चाहिए ।
२८. जैसे जैसे पुरुष शास्त्रो का गहरा अभ्यास करता जाता है, वैसे वैसे वह - उनके रहस्यो को जानता जाता है और उसका ज्ञान उज्ज्वल एव प्रकाश
मान होता जाता है। २६. अधार्मिक ग्राम मे निवास नही करना चाहिए ।