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महाभारत को सूक्तियां
दो सौ इकसठ ६३. जो पुरुष उद्योगवीर है, वह कोरे वाग्वीर पुरुषो पर अपना अधिकार
जमा लेता है। ____६४ जो अहिंसक है और ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, वही ब्रह्मा के आसन पर
बैठने का अधिकारी होता है । ___६५ किसी भी प्राणी को हिंसा न करना, सत्य बोलना, क रता को त्याग
देना, मन और इन्द्रियो को सयम मे रखना तथा सब के प्रति दया भाव रखना-इन्ही को घीर (ज्ञानी) पुरुपो ने तप माना है। केवल शरीर
को सुखाना ही तप नहीं है। ६६. सभी प्रकार की कुटिलता मृत्यु का स्थान है और सरलता परब्रह्म की
प्राप्ति का स्थान है । मात्र इतना ही ज्ञान का विषय है। और सब तो प्रलापमात्र है, वह क्या काम आएगा
६७. दान से उपभोग और ब्रह्मचर्य से दीर्घायु प्राप्त होता है ।
___१८ याचक मर जाता है, किन्तु दाता कभी नहीं मरता ।
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अन्न के समान न कोई दान हुमा है और न होगा।
१००. अन्न ही मनुष्यो के प्राण है, अन्न में ही सब प्रतिष्ठित है।
१०१. देवराज इन्द्र ने कहा है कि गौमओ का दूध अमृत है।
१०२ जो प्रसन्न एवं शुद्ध मन से ब्रह्मज्ञान रूपी जल के द्वारा मानसतीर्थ मे
स्नान करता है, उसका वह स्नान ही तत्वदर्शी ज्ञानी का स्नान माना गया है।