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महाभारत को सूक्तियां
दो सौ उनसठ ८२. कायर और आलसी व्यक्ति को राज्य (ऐश्वर्य) कैमे प्राप्त हो सकता है ?
२३. धन से कुल की प्रतिष्ठा बढती है और धन से ही धर्म की वृद्धि होती
८४. जो मनुष्य अतीत के बीते हुए शारीरिक अथवा मानसिक दु खो के लिए
बार-बार शोक करता है, वह एक दुःख से दूसरे दुःख को प्राप्त होता
है । उसे दो-दो अनर्थ भोगने पड़ते हैं। ८५. मन मे सन्तोप का होना स्वर्ग को प्राप्ति से भी बढ कर है । सन्तोष ही
सबसे बड़ा सुख है। ८६. सुख हो या दु.ख, प्रिय हो या अप्रिय, जव भी जो कुछ भी प्राप्त हो, उसे
सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए, अपने हृदय को उक्त द्वन्द्वो के समक्ष कमी पराजित न होने दें।
८७. ससार में जो अत्यन्त मूत्र हैं, अथवा जो बुद्धि से परे पहुँच गये हैं ,
अर्थात् पूर्ण ज्ञानी हो गए हैं, वे ही सुखी होते हैं, वीच के लोग तो कष्ट
ही उठाते हैं। ८८. जान-बूझ कर किया हुमा पाप बहुत भारी होता है । ८६. ऊपर से कोई काम देखने मे छोटा होने पर भी यदि उस में सार अधिक
हो तो वह महान् ही है । न करने की अपेक्षा कुछ करना अच्छा है,
क्योकि कर्तव्य कर्म न करने वाले से बढ कर दूसरा कोई पापी नही है। ६०. धर्म प्रजा की जड (मूल) है ।
___६१. वैर पांच कारणो से हुआ करता है, इस बात को विद्वान् पुरुप अच्छी
तरह जानते हैं-१ स्त्री के लिए, २ घर और जमीन के लिए, ३. कठोर वाणी के कारण, ४. जातिगत द्वेष के कारण, और ५ अपराध
के कारण । ___६२. धर्म और सत्पुरुषो का आचार-व्यवहार-ये बुद्धि से ही प्रकट होते हैं,
जाने जाते हैं।