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________________ महाभारत को सूक्तियां दो सौ पैंतालीस १५. जब मनुष्य मन, वाणी और कर्म द्वारा कभी किसी प्राणी के प्रति बुरा भाव नहीं करता, तब वह ब्रह्मत्वस्वरूप को प्राप्त हो जाता है । १६ सर्वत्र ब्रह्मदृष्टि होने पर जब साधक न किसी से डरता है और न उससे ही दूसरे प्राणी डरते है, तथा जब वह न तो किसी से कुछ इच्छा करता है और न किसी से दुप ही रखता है, तब वह ब्रह्मत्व भाव को प्राप्त हो जाता है । १७ जो पुरुष दूसरो के आचार व्यवहार और कुल को निन्दा करते हैं, उन पापपूर्ण विचार वाले मनुष्यो के सम्पर्क मे कल्याण की इच्छा रखने वाले विद्वान् पुरुष को नही रहना चाहिए । १८. सभी प्राणियो के प्रति दया और मंत्री का व्यवहार, दान और सब के प्रति मधुर वाणी का प्रयोग-तीनो लोको मे इनके समान अन्य कोई वशीकरण नही है। १६ सुख से वंचित निराश्रित लोगो के लिए सन्त ही एक मात्र श्रेष्ठ आश्रय स्थान हैं। २०. दुःखो से सतप्त न हो और सुखो से हर्षित न हो । धीर पुरुष को सदा समभाव से ही रहना चाहिए । २१ तप, दान, शम, दम, लज्जा, सरलता और समस्त प्राणियी के प्रति दया -सन्तो ने स्वर्गलोग के ये सात महान् द्वार बतलाए हैं। २२. यह संसार देव और पुरुषार्थ पर प्रतिष्ठित-आधारित है । इनमे देव तभी सफल होता है, जब समय पर उद्योग किया जाए । २३ ससार मे किमी भी मनुष्य के हृदय मे मैत्री (स्नेहभावना) अमिट होकर नही रहती । एक तो समय और दूसरा क्रोध, मैत्री को नष्ट कर डालते
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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