________________
एक सी इक्यावन
ब्राह्मण साहित्य को सूक्तिया ३३. असत्य मृत्यु है, और मत्य अमृत है ।
३४. अन्धकार मृत्यु है और प्रकाश अमृत है ।
३५. दूसरे से ही भय होता है ।
३६ अपने मे ब्राह्मण (ज्ञानज्योति) का सन्धान (सम्पादन, अभिवर्धन) करो,
अपने मे क्षत्रियत्व (कर्मज्योति) का सन्धान करो। ३७. अपने में मन (मनन शक्ति) का सन्धान करो, अपने मे वाचा (वक्तृत्व
शक्ति) का सन्धान कगे। ३८ आंख ही सत्य है, अर्थात् सुनी सुनाई बातो की अपेक्षा स्वय का साक्षा.
त्कृत अनुभव हो सत्य होता है। ३६. गृहस्थ के घर में कोई भी विद्वान् अतिथि विना भोजन किए (भूखा) न
रहने पाए। ४०. भद्र साधक ही स्वर्ग लोक का अधिकारी होता है।
४१ - मौन भाव से चुपचाप होम करना चाहिए, साधना करनी चाहिए।
४२. तू स्वय प्रकाशमान होकर समग्र दिशाओ को अच्छी तरह प्रकाशमान
कर। ४३., ब्रह्म भाव की उपासना करने वाले को न मांस खाना चाहिए, न स्त्री
ससगं ही करना चाहिए ।
जो मास खाता है, स्त्रीससगं करता है, वह निर्वीर्य हो जाता है, उसको - ब्रह्म तेज प्राप्त नही होता ।
-कृ० त० ब्रा० के समस्त टिप्पण सायणाचार्यविरचित भाप्य के है। -अक क्रमश. काण्ड, प्रपाठक तथा अनुवाक के सूचक हैं ।