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ब्राह्मण साहित्य को सूक्तियां
एक सौ संतालीस ७. 'कल कल' की उपासना मत करो, अर्थात् कल के भरोसे मत वैठे रहो ।
मनुष्य का कल कौन जानता है ? ८. सत्य ही ब्रह्म है।
६ जो हो चुका है, वह निश्चित है । जो होगा, वह अनिश्चित है।
१०. 'बाज' निश्चित है । जो 'कल' है, वह अनिश्चित है।
११. दिव्य आत्मा मर्यादा का अतिक्रमण नही करते हैं ।
१२. जो किमी व्रत में दीक्षित होता है, वह देवतामो की गणना में आ जाता
१३ हर व्यक्ति अपनी ही त्वचा (परिफर एव ऐश्वर्य) से समृद्ध होता है ।
१४. देव सोते नहीं हैं अर्थात् दिव्य आत्मा कभी प्रमत्त नहीं होते ।
१५ परस्पर एक दूसरे को हिसित अर्थात् पीडित नही करना चाहिए ।
१६. तप एक अग्नि है, तप एक दीक्षा है ।
१७. तप के द्वारा ही सच्ची विश्वविजय प्राप्त होती है ।
१८. शान्त पुरुष किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देते हैं ।
१६. जिसके सहयोगी हैं, साथी हैं, वस्तुत. वही शक्तिशाली है।