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सामवेद की सूक्तियां
एक सौ पांच ६. हे इन्द्र ! हम जिससे भयभीत हो, तुम उससे हमे अभय करो ।
७. इन्द्र मुनियो (तत्त्वज्ञानियो) का सखा है ।
८. अन्धकार को दूर करो, तेज (प्रकाश) का प्रसार करो।
६. आत्मदेवता (अथवा महाकाल) के महान् सामथ्यं को देखिए कि जो
आज जराजोर्ण होकर मरता है, वह कल ही फिर नये रूप में जीवित
हो जाता है, नया जन्म धारण कर लेता है । १०. संघर्षों के उपस्थित होने पर जो जीतता है, वही ऐश्वयं पाता है।
११. स्वर्ग पर विजय प्राप्त करो।
१२. मैं अन्न देवता अन्य देवताओ तथा सत्यस्वरूप अमृत ब्रह्म से भी पूर्व
जन्मा हूँ। जो मुझ अन्न को अतिथि आदि को देता है, वही सब प्राणियो की रक्षा करता है। जो लोभी दूसरो को नही खिलाता है, मैं अन्न देवता उस कृपण को स्वय खा जाता हूँ, नष्ट कर देता हूँ।
१३. मैं त्याज्य अर्थात् निन्द्य वचन नही बोलता ।
१४. मैं कभी यश से हीन न होऊ । इस मेरी सभा (समाज) का यश कभी
नष्ट न हो । मैं सदा सर्वत्र स्पष्ट बोलने वाला बनू ।
यानि । ६. ब्रवीमि । १०. अस्या मम संसदः समूहस्य यशो न प्रमुच्यताम् । ११. सर्वत्र प्रवक्ता।