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सुत्तपिटक इतिवृत्तक की सूक्तियां
१. भिक्षओ, एक मोह को छोड़ दो, मैं तुम्हारे अनागामी (निर्वाण) का
जामिन होता है।
२. संघ का मिलकर रहना सुखदायक है । सघ मे परस्पर मेल बढाने वाला,
मेल करने में लीन धार्मिक व्यक्ति कभी योग-क्षेम से वचित नहीं होता।
३. बुद्धिमान् लोग पुण्य कर्म (सत्कम) करने मे प्रमाद न करने की प्रशसा
करते हैं। ४. जो भोजन की माया को जानता है और इन्द्रियो मे सयमी है, वह बडे
आनन्द से शारीरिक तथा मानसिक सभी सुखो को प्राप्त करता है ।
५ भिक्षुओ | दो परिशुद्ध बातें लोक का संरक्षण करती हैं ?
कोन सी दो ?
लज्जा और सकोच । ६. सोने से जागना श्रेष्ठ है, जागने वाले को कही कोई भय नही है ।