________________
इकराट
धम्मपद की मूक्तिया ५६ अकेला चलना अच्छा है, किंतु मूखं का सग करना ठीक नही है ।
६०. धर्म का दान, सव दानो से बढकर है।
धर्म का रस, सब रसो से श्रेष्ठ है।
६१. दुर्बुद्धि अज्ञानी को भोग नष्ट कर देते है ।
६२. खेतो का दोप तृग (पान फूस) है, मनुष्यो का दोप राग है।
६३ अपने लाभ को अवहेलना न करे, दूसरो के लाभ की स्पृहा न करे ।
दूसरो के लाभ की स्पृहा करने वाला भिक्षु समापि नही प्राप्त कर सकता।
६४ जो ममता का आचरण करता है, वह समण (श्रमण) कहलाता है।
६५. मन ज्यो ज्यो हिंसा से दूर हटता है, त्यो त्यो दु ख शात होता जाता है।
६६. मूर्ख । जटाओ से तेरा क्या बनेगा, और मृग छाला से भी तेरा क्या
होगा? तेरे अन्दर मे तो राग द्वेप आदि का मल भरा पड़ा है, वाहर क्या घोता है ?
१. भिक्षु धर्मरक्षित द्वारा सपादित 'धम्मपद'
मास्टर खिलाड़ी लाल एन्ड सन्स, वाराणसी संस्करण