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सुत्तपिटक अंगुत्तरनिकाय की सूक्तियां
१. भिक्षुत्रो ! सुरक्षित चित्त महान् अयं लाभ के लिए होता है ।
____२. भिक्षुरो | आलस्य बडे भारी अनर्थ (हानि) के लिए होता है ।
३ भिक्षुत्रो ! वीर्यारम्भ (उद्योगशीलता) महान् अर्थ की सिद्धि के लिए
होता है। ४ भिक्षुओ । मिथ्यादृष्टि की इन दो गतियो मे से कोई भी एक गति होतो
है-नरक अयवा तिथंच ।
५ भिओ । सम्यग् दृष्टि आत्मा की इन दो गतियो मे से कोई भी एक
गति होती है- देव अथवा मनुष्य ।
६ भिक्षुओ | दो सुख हैं।
कौन से दो ? कायिक सुख और मानसिक सुख । भिक्षुओ । इन दो सुखो मे मानसिक सुख अग्र है, मुख्य है ।