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चूरिंगसाहित्य को सूक्तियां
१. यह जो अन्दर मे 'अह' की-'म' की-चेतना है, यह आस्मा का
लक्षण है। २ जैसे इष्ट-अनिप्ट, सुख-दु.ख मुझे होते हैं, वैसे ही सब जीवो को होते हैं ।
३. असंतुष्ट व्यक्ति को यहा, वहां सर्वत्र भय रहता है।
४. केवल अवस्था से ही कोई वाल ( बालक ) नहीं होता, किन्तु जिसे अपने
कर्तव्य का ज्ञान नहीं है वह भी 'वाल' ही है। ५ विपयासक्त को कर्तव्य-अकर्तव्य का वोव नहीं रहता।
३. उचित समय पर काम करने वाले का ही श्रम सपल होता है ।
७. साधक को न कभी दीन होना चाहिए और न अभिमानी ।
८. धर्म मे उद्यमी क्रियाशील व्यक्ति, उष्ण-गर्म है, उद्यमहीन शीतल
ठंडा है।